नई दिल्ली: देश की सर्वोच्च अदालत ने नाबालिगों से जुड़ी संपत्ति के लेन-देन पर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। अदालत ने कहा है कि यदि किसी नाबालिग की अचल संपत्ति उसके माता-पिता या अभिभावक ने अदालत की अनुमति के बिना बेच दी है, तो बालिग होने के बाद वह व्यक्ति उस सौदे को अस्वीकार कर सकता है। इसके लिए किसी औपचारिक मुकदमे की भी आवश्यकता नहीं होगी।
जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले की पीठ ने “के.एस. शिवप्पा बनाम श्रीमती के. नीलाम्मा” मामले में यह फैसला 7 अक्टूबर को सुनाया। अदालत ने कहा कि “यदि कोई नाबालिग वयस्क होने पर अपने अभिभावक द्वारा की गई बिक्री से असहमत है, तो वह या तो मुकदमा दायर करके या अपने स्पष्ट आचरण से जैसे कि वही संपत्ति किसी और को बेचकर उस सौदे को अस्वीकार कर सकता है।”
क्या कहा अदालत ने
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम, 1956 की धारा 7 और 8 के तहत किसी भी नाबालिग की अचल संपत्ति को बेचना, बंधक रखना या उपहार में देना तभी वैध होगा, जब अदालत की पूर्व अनुमति ली गई हो। यदि अनुमति नहीं ली गई है, तो यह सौदा शून्यकरणीय (voidable) माना जाएगा और नाबालिग के वयस्क होने पर उसकी इच्छा के अनुसार निरस्त किया जा सकता है।
अदालत ने कहा कि “कानून में यह जरूरी नहीं है कि ऐसे सौदों को रद्द करने के लिए मुकदमा ही दायर किया जाए। व्यवहार या आचरण से भी अस्वीकृति वैध मानी जाएगी।”
मामला क्या था
यह विवाद कर्नाटक के दावणगेरे जिले के शामनूर गांव की दो संपत्तियों (प्लॉट नंबर 56 और 57) से जुड़ा था।
1971 में रुद्रप्पा नाम के व्यक्ति ने ये जमीनें अपने तीन नाबालिग बेटों- महारुद्रप्पा, बसवराज और मुंगेशप्पा के नाम पर खरीदी थीं। लेकिन बाद में उसने जिला न्यायालय की अनुमति लिए बिना ही ये संपत्तियां तीसरे पक्ष को बेच दीं।
नाबालिगों के वयस्क होने के बाद उन्होंने और उनकी मां ने 1989 में वही प्लॉट के.एस. शिवप्पा को बेच दिया। इससे पहले खरीदार जयदेवम्मा और नीलाम्मा ने स्वामित्व का दावा करते हुए अदालत में मुकदमे दायर किए। ट्रायल कोर्ट ने रुद्रप्पा की बिक्री को अमान्य बताया, लेकिन बाद में अपीलीय अदालत और कर्नाटक हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलट दिया। इसके बाद शिवप्पा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
सुप्रीम कोर्ट का निष्कर्ष
सर्वोच्च अदालत ने कहा कि—
• बिना अदालत की अनुमति के नाबालिग की संपत्ति का सौदा वैध नहीं होता।
• ऐसा लेन-देन नाबालिग के कहने पर शून्यकरणीय होता है।
• बालिग होने के बाद वह व्यक्ति मुकदमा दायर कर या व्यवहार से भी उस सौदे को अस्वीकार कर सकता है।
• कानून में यह तय नहीं किया गया है कि अस्वीकृति किस रूप में की जाए, लिखित या मौखिक दोनों स्वीकार्य हैं।
क्यों है फैसला अहम
यह फैसला उन तमाम मामलों के लिए मिसाल बनेगा जहां माता-पिता या अभिभावक नाबालिगों की संपत्ति को कोर्ट की अनुमति के बिना बेच देते हैं। अब बालिग होने के बाद ऐसे लोग सीधे अपने व्यवहार या दूसरे सौदे के माध्यम से भी पुराने सौदों को रद्द मान सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, नाबालिग की संपत्ति अभिभावक बिना अनुमति बेचें तो व्यस्क होने पर रद्द कर सकता है सौदा














