छठ महापर्व आज से शुरू, जानें पूजा का समय और महत्व

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Chhath Puja 2024: लोक आस्था का महापर्व छठ कद्दू-भात (नहाय-खाय) के साथ मंगलवार से प्रारंभ हो जाएगा। जो अगले चार दिनों तक चलेगा। इसके लिए सभी व्रती परिवार तैयारियों में जुट गए हैं। इस दिन व्रती सूर्योदय से पहले आस-पास के किसी तालाब और नदी में स्नान करते हैं फिर भात, चना दाल और कद्दू या लौकी का प्रसाद बनाकर उसे ग्रहण करते हैं। छठ पूजा का पहला दिन नहाय खाय है। सूर्योदय सुबह 6 बजकर 39 मिनट पर होगा और सूर्यास्त शाम 5 बजकर 41 मिनट पर होगा। इस समय व्रती लोग पूजा कर सकते हैं।

नहाय-खाय में साफ सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है। प्रसाद तैयार करते समय स्वच्छता का खास ख्याल रखना होता है। छठ महापर्व में केवल व्रती को नहीं, बल्कि पूरे परिवार को सात्विक भोजन करना होता है। इस दिन प्रसाद बनाने के लिए साफ चूल्हे का ही प्रयोग करें। आपको बता दें कि इस दिन व्रती एकबार ही भोजन करते हैं। फिर अगले दिन शाम को खरना किया जाता है।

छठ पूजा का कैलेंडर 2024

5 नवंबर 2024, मंगलवार- नहाय खाय
6 नवंबर 2024, बुधवार- खरना
7 नवंबर 2024, गुरुवार- संध्या अर्घ्य

8 नवंबर 2024, शुक्रवार- उषा अर्घ्य

छठ का पौराणिक महत्व

पुराणों के अनुसार, प्रियव्रत नामक एक राजा की कोई संतान नहीं थी। इसके लिए उसने हर जतन कर कर डाले, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। तब उस राजा को संतान प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप ने उसे पुत्रयेष्टि यज्ञ करने का परामर्श दिया। यज्ञ के बाद महारानी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन वह मरा पैदा हुआ। राजा के मृत बच्चे की सूचना से पूरे नगर में शोक छा गया। कहा जाता है कि जब राजा मृत बच्चे को दफनाने की तैयारी कर रहे थे, तभी आसमान से एक ज्योतिर्मय विमान धरती पर उतरा। इसमें बैठी देवी ने कहा, ‘मैं षष्ठी देवी और विश्व के समस्त बालकों की रक्षिका हूं।’ इतना कहकर देवी ने शिशु के मृत शरीर को स्पर्श किया, जिससे वह जीवित हो उठा। इसके बाद से ही राजा ने अपने राज्य में यह त्योहार मनाने की घोषणा कर दी।

माता सीता ने भी की थी सूर्यदेव की पूजा

मान्यता के अनुसार, जब राम-सीता 14 साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, तब रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया। पूजा के लिए उन्होंने मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया। मुग्दल ऋषि ने मां सीता पर गंगाजल छिड़ककर पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। इससे सीता ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी। सप्तमी को सूर्योदय के समय फिर से अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था।

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