रांची: झारखंड उच्च न्यायालय ने सामान्य स्नातक संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा (सीजीएल-2023) में कथित अनियमितताओं और पेपर लीक के आरोपों को लेकर दायर याचिका पर सोमवार को दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति राजेश शंकर की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान मेरिट लिस्ट जारी न करने पर लगी रोक को यथावत रखने का निर्देश दिया।
याचिकाकर्ता प्रकाश कुमार एवं अन्य की ओर से दायर जनहित याचिका में परीक्षा रद्द करने और पूरे प्रकरण की सीबीआई जांच की मांग की गई है। आरोप लगाया गया है कि सितंबर 21 और 22 को आयोजित परीक्षा में पेपर लीक, पेपर का सील टूटा होना तथा बड़ी संख्या में पुराने प्रश्नों की पुनरावृत्ति जैसी गड़बड़ियां सामने आईं। इस परीक्षा में 3,04,769 अभ्यर्थी शामिल हुए थे, जबकि 2025 पदों के लिए चयन प्रक्रिया चल रही है।
सरकार का पक्ष: “पेपर लीक नहीं, केवल पुराने प्रश्नों की पुनरावृत्ति”
सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता राजीव रंजन ने अदालत को बताया कि सीआईडी जांच में अब तक पेपर लीक के कोई साक्ष्य नहीं मिले हैं।
उन्होंने कहा, विभिन्न वर्षों के कुछ प्रश्नों की पुनरावृत्ति को पेपर लीक नहीं माना जा सकता। संतोष मस्ताना नामक व्यक्ति से पूछताछ में केवल “गेस क्वेश्चन” की बात सामने आई। 830 परीक्षा केंद्रों में से केवल तीन केंद्रों पर अनियमितता की आशंका है।
महाधिवक्ता ने बताया कि कथित संदिग्ध केंद्रों पर कुछ उम्मीदवारों ने मोबाइल फोन के जरिए प्रश्न हल करवाने और उत्तर लिखने का प्रयास किया था। बाद में जिन उत्तर पुस्तिकाओं को कूड़ेदान से बरामद किया गया, उनमें प्रश्नपत्र से मेल खाते प्रश्न-उत्तर पाए गए, जिससे लोगों को पेपर लीक की आशंका हुई। हालांकि जांच में इसे सिस्टमेटिक पेपर लीक नहीं पाया गया।
अगली सुनवाई की प्रतीक्षा
अदालत ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है। फैसले तक परीक्षा परिणाम और नियुक्ति प्रक्रिया पर रोक जारी रहेगी। अब सभी की निगाहें हाईकोर्ट के अंतिम निर्णय पर टिकी हैं, जो आने वाले दिनों में स्पष्ट करेगा कि सीजीएल-2023 परीक्षा रद्द होगी या नियुक्ति प्रक्रिया आगे बढ़ेगी।
सीजीएल पेपर लीक मामले में फैसला सुरक्षित, मेरिट लिस्ट पर रोक बरकरार










