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Devshayani Ekadashi 2025: आषाढ़ शुक्ला एकादशी अर्थात् देवशयनी एकादशी आज रविवार 6 जुलाई 2025 से कार्तिक शुक्ला एकादशी अर्थात् देव उठनी एकादशी रविवार 2 नवंबर तक चातुर्मास रहेगा। इसे देव-शयन काल भी कहते है। ऐसे में सभी मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाएगा। सनातन धर्म में एकादशी का दिन भगवान विष्णु को समर्पित किया गया है। कहा जाता है कि इस दिन पूरे शुद्ध मन से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करने से मनचाहा फल की प्राप्ति होती है। साल भर में कुल 24 एकादशी होती हैं।

देवशयनी एकादशी का महत्व

हिंदू धर्म में देवशयनी को बेहद पुण्यदायी माना गया है। माना जाता है कि इस दिन व्रत व विधिपूर्वक पूजन करने से जातक सभी प्रकार के पापों से मुक्त हो जाता है। देवशयनी एकादशी पर दान-धर्म के कार्यों का भी विशेष महत्व बताया गया है। देवशयनी एकादशी के बाद भगवान विष्णु चार महीने के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं। इसी अवधि को भगवान का शयनकाल कहा जाता है और इस दिन चातुर्मास लग जाता है। इन चार माह में सारे शुभ-मांगलिक कार्यों पर रोक लगा दी जाती है। इसके अलावा इसे हरिशयनी और पद्मनाभा एकादशी भी कहते हैं। मान्यता है कि भगवान विष्णु के विश्राम में चले जाने के बाद भगवान शिव सृष्टि का कार्यभार संभालते हैं।

देवशयनी एकादशी तिथि का आरंभ 05 जुलाई 2025 शाम 6 बजकर 58 मिनट से शुरू हो गया है और इसका समापन 6 जुलाई की शाम 9 बजकर 14 मिनट पर होगा। यही कारण है कि 6 जुलाई को देवशयनी एकादशी व्रत रखा जाएगा और इसी दिन से चातुर्मास भी शुरू होगा।

देवशयनी एकादशी व्रत पारण समय – 7 जुलाई, सुबह 5 बजकर 29 मिनट से 8 बजकर 16 मिनट तक।

देवशयनी एकादशी व्रत पूजन विधि

देवशयनी एकादशी के दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान व ध्यान से निवृत होकर हाथ में अक्षत लेकर व्रत का संकल्प लें। इसके बाद एक चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें और चारों तरफ गंगाजल से छिड़काव करें, फिर षोडषोपचार विधि से भगवान विष्णु की पूजा करें। भगवान विष्णु को पीला रंग बहुत प्रिय है इसलिए भगवान को पीले फूल, पीले फल आदि अर्पित करें। इसके बाद धूप दीप जलाएं और कथा का वाचन करें। पूजन के बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आरती उतारें और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। भगवान विष्णु का पूजन करने के बाद पीपल और केले के वृक्ष की भी पूजा करें और सामर्थ्य के अनुसार दान पुण्य भी करें।

देवशयनी एकादशी शयन पूजा विधि

देवशयनी एकादशी तिथि को सायंकाल के समय भी पूजा की जाती है। अपनी सामार्थ्य के अनुसार सोना, चांदी, तांबा या कागज की मूर्ति बनवाकर गायन वादन के साथ विधिपूर्वक पूजा करें। इसके बाद शयन मंत्र का जप करते हुए सजी हुई शय्यापर शयन करवाएं। इसके बाद रात्रि जागरण करना चाहिए। भगवान का सोना रात्रि के समय, करवट बदलना संधिकाल में और जागना दिन में होता है।

देवशयनी एकादशी पर न करें ये काम

इस पावन दिन पर तामसिक चीजें लहसुन-प्याज से दूर रहना चाहिए। इस दिन मांस, मदिरा-पान आदि का सेवन करने की गलती न करें। मान्यताओं के अनुसार, एकादशी पर चावल का सेवन नहीं करना चाहिए। साथ ही देवशयनी एकादशी के दिन भूलकर भी बालों और नाखूनों को नहीं काटना चाहिए।

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