ईश्वर की आराधना भक्ति पूर्वक करनी चाहिए, अहंकार के साथ नहीं:- जीयर स्वामी
बद्रीनारायण का मतलब होता है भगवान के अनेक अवतारों में भगवान एक अवतार यह हुआ कि तपस्वी जीवन जी करके भी हम जगत् का कल्याण करें। राजन्या अवतार, ऋषि का अवतार, विप्र का अवतार, मत्स्यावतार, कुर्मावतार, इस अवतार को लेकर मैने जगत् का उद्धार किया। लेकिन तपस्वी का अवतार लेकर भी जगत् का उद्धार करना चाहिए। ऐसा विचार कर भगवान श्रीमन्नारायण अपने ही स्वरूप से अपने स्वयं नारायण बन गए और अपने भक्त को अपने आप नर बना दिए। दोनों नर तथा नारायण दोनों जब तपस्या करने लगे तब लक्ष्मी जी ने हिमालय पर बेर के वृक्ष के रूप में भगवान श्रीमन्नारायण को छाया देने लगी। इस प्रकार भगवान का नाम पड़ा बद्रीनारायण।
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