एजेंसी: टाइप-1 डायबिटीज को ऐसी बीमारी माना जाता रहा है जिसमें मरीज जीवनभर इंसुलिन इंजेक्शन पर निर्भर रहते हैं। यह एक ऑटोइम्यून बीमारी है, जहां शरीर खुद इंसुलिन बनाने वाली बीटा-कोशिकाओं पर हमला कर देता है। लेकिन दुनिया भर में चल रहे नए चिकित्सा शोध अब इस पुरानी धारणा को बदलने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। स्टेम-सेल थेरेपी ने इस बीमारी के संभावित इलाज की नई रोशनी जगाई है।
क्लिनिकल ट्रायल ने बदली एक मरीज की जिंदगी
2015 में टाइप-1 डायबिटीज से पीड़ित होने का पता चलने के बाद अमेरिकी महिला एमांडा स्मिथ का जीवन पूरी तरह बदल गया था। उनका शरीर इंसुलिन बनाना लगभग बंद कर चुका था। लेकिन स्टेम-सेल आधारित क्लिनिकल ट्रायल VX-880 में शामिल होने के बाद हालात नाटकीय रूप से सुधरे।
पिछले दो वर्षों से एमांडा को इंसुलिन इंजेक्शन की जरूरत नहीं पड़ी है। यह संभव हुआ लैब में बनाई गई इंसुलिन-उत्पादक कोशिकाओं के प्रतिरोपण के जरिए। इन कोशिकाओं ने उनके शरीर में प्राकृतिक बीटा-सेल्स की तरह काम करना शुरू कर दिया।
येल स्कूल ऑफ मेडिसिन के विशेषज्ञ डॉ. केवन हेरॉल्ड का कहना है कि भले ही इसे अभी पूरी तरह इलाज कहना जल्दबाज़ी होगी, लेकिन चिकित्सा विज्ञान जिस दिशा में बढ़ रहा है, वह निश्चित रूप से उम्मीद जगाती है।
स्टेम-सेल्स कैसे काम करते हैं?
स्टेम-सेल्स ऐसी बहुउद्देश्यीय कोशिकाएं होती हैं जिन्हें किसी भी नई प्रकार की कोशिका में बदला जा सकता है। वैज्ञानिक इन्हें लैब में इंसुलिन बनाने वाली बीटा-सेल्स में परिवर्तित करते हैं और फिर मरीज के शरीर में ट्रांसप्लांट किया जाता है। इसके बाद शरीर इंसुलिन बनाना शुरू कर देता है, ब्लड शुगर लेवल ज्यादा स्थिर रहता है, इंजेक्शन पर निर्भरता कम होती जाती है, बीमारी की जड़ पर सीधे प्रहार होता है, सिर्फ लक्षण नहीं दबाए जाते।
अब भी बड़ी चुनौतियां मौजूद
हालांकि यह थेरेपी इलाज की दिशा में बड़ा कदम है, लेकिन कुछ मेडिकल चुनौतियां अभी भी हल होना बाकी हैं:
• नई कोशिकाओं को शरीर अस्वीकार न करे, इसके लिए इम्यून-सप्रेशन दवाएं लेनी पड़ती हैं।
• इन दवाओं से संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।
• नई कोशिकाएं लंबे समय तक कितनी कारगर रहेंगी, यह अभी पूरी तरह स्पष्ट नहीं।
• वैज्ञानिक ऐसा तरीका खोज रहे हैं जिसमें बिना इम्यून-सप्रेशन के भी कोशिकाएं शरीर में जीवित रहें।
भविष्य की अनंत संभावनाएं
यदि स्टेम-सेल आधारित उपचार व्यापक रूप से सफल होता है, तो टाइप-1 डायबिटीज मरीजों की जिंदगी पूरी तरह बदल सकती है। इंसुलिन इंजेक्शन की जरूरत लगभग खत्म हो सकती है। ब्लड शुगर नियंत्रण बेहद आसान हो जाएगा। किडनी, आंखों और नर्व्स डैमेज जैसी जटिलताओं से राहत मिलेगी। बच्चों और किशोरों की लाइफ क्वालिटी में बड़ा सुधार होगा।
इतना ही नहीं, विशेषज्ञों का मानना है कि यह तकनीक भविष्य में हार्ट, लिवर और न्यूरोलॉजिकल बीमारियों में भी गेम-चेंजर साबित हो सकती है।
डायबिटीज के मरीजों के लिए खुशखबरी, अब एक ही इंजेक्शन से ठीक हो सकती है बीमारी













