मनुष्य को अश्लील दृश्य नहीं देखना चाहिए, इससे मस्तिष्क में कुविचार उत्पन्न होते हैं : जीयर स्वामी

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शुभम जायसवाल

श्री बंशीधर नगर (गढ़वा):– श्री बंशीधर नगर प्रखंड के पाल्हे – जतपुरा में आयोजित श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ के पिछले अठारवे दिनों से चल रहें श्री श्री 1008 श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी महाराज के प्रवचन में उपस्थित बड़ी संख्या में श्रद्धालु भक्तों की भीड़ में कहा की अश्लील दृश्यों को देखने से मस्तिष्क में कुविचार उत्पन्न होते हैं। अश्लील दृश्य, अश्लील गीत व अश्लील वार्ता से मन में विकृति पैदा होती है, जिसकी स्मृति से चेतन मन में स्थायी रूप अंकित हो जाती है। इसके कारण सामान्य जीवन में विचलन का भय रहता है। मानव जीवन अपने उद्देश्यों से भटक जाता है। परिवार, समाज एवं देश के स्तर पर अश्लील दृश्य एवं अश्लील गीतों के प्रति वर्जनात्मक संवेदनशीलता बरतनी चाहिए। स्वामी जी ने कहा कि अजामिल कनौज क्षेत्र के सदाचारी ब्राह्मण थे। वे दिनचर्या के तहत पूजा का फूल और तुलसी पत्र लेने वाटिका में गये थे। वहां उन्होंने एक लम्पट व्यक्ति को वेश्या के साथ अस्त-व्यस्त स्थिति में देखा। यह दृश्य उनके मानस-पटल में बैठ गया। कुछ दिन उसी द्श्य की स्मृति में रमने के बाद वे भी वेश्यागामी हो गये। अपनी पत्नी एवं संतान को घर से निकाल कर वेश्या को स्थायी रुप से घर में बैठा दिये। पूजा-पाठ एवं जपादि धार्मिक कृतियों से विमुख हो गये। अपनी सम्पति समाप्त होने के बाद जीवन चापन के लिए चोरी-डकैती का सहारा लेने लगे।

उस वेश्या से नौ संतानें उत्पन्न हुई। दसवीं संतान के गर्भ में आने के बाद तीर्थ यात्रा पर निकले संतों का एक समूह एक दिन अजामिल के घर पहुंचा। उसकी वेश्या पत्नी ने संतों का सत्कार किया। जाते वक्त संतों ने आग्रह कि दसवीं पुत्र का नाम नारायण रखना। अजामिल का उस पुत्र में आसक्ति बढ़ गयी और मृत्यु के समय जब यमदूत आये तो अजामिल डर से नारायण-नारायण पुकारने लगा। यमदूत नारायण भक्त जान लौट गये और विष्णु गण उसे ले गये, जिससे उसकी मुक्ति हो गयी। स्वामी जी ने कहा कि एक बार का अश्लील दृश्य अजामिल के जीवन को विदूप कर दिया। दूसरी तरफ संतों का मात्र एक दिन का सान्निध्य उसके जीवन को मंगलमय बना दिया। स्वामी जी ने कहा कि धर्म को जान कर करना चाहिए। बिना जाने नहीं। जैसे हवन करना धर्म है, लेकिन पाँचों अंगुलियों के साथ आहूति नहीं देनी चाहिए। हवन और जाप में सिर्फ तीन अंगुलियां अंगुठा, मध्यमा और अनामिका का सहारा लेना चाहिए। यानी तीन अंगुलियों से ही हवन ओर जाप करनी चाहिये। तर्जनी और कनिष्का को अलग रखनी चाहिए। पाँचों अंगुलियों से किया गया हवन से फल प्राप्ति नहीं होती है।

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