झारखंड वार्ता न्यूज
गढ़वा:- नवरात्रि के अवसर पर स्थानीय नरगीर आश्रम मे चल रहे नौ दिवसीय रामकथा महायज्ञ के तीसरे दिन अयोध्या निवासी पूज्य संत प्रपन्नाचार्य जी ने बालकाण्ड के विभिन्न प्रसंगों का रोचक वर्णन प्रस्तुत किया। उन्होने भक्ति की तुलना गन्ने से की। जैसे गन्ना का मिठास ऊपर से नीचे की ओर धीरे धीरे बढ़ता जाता है ठीक उसी तरह भक्ति क्रमश: स्थूल से सूक्ष्म होते जाता है। भक्ति की पराकाष्ठा ईष्ट और मोक्ष की प्राप्ति है।

प्रपन्नाचार्य जी ने कहा कि कथा जब सुनने जाएं तो अपनी तार्किक बुद्धि और अहंकार को बाहर छोड़ कर जाएं। तभी आप कथा का सही लाभ ले पाएंगे। कलियुग मे ईश नाम की बड़ी महिमा है यह आस्था की चीज है। तार्किक बुद्धि भक्ति मे अवरोध उत्पन्न करता है। ईश्वर पर संशय करना अनिष्टकारी होता है। माता सती ने राम के ब्रह्म होने पर संशय किया था, उन्होने रामजी की परीक्षा ली फिर पति से असत्य भी बोला। पति के आज्ञा की अवहेलना करते हुए मायके गई जिस कारण उन्हें शरीर का त्याग करना पड़ा। सती के शरीर त्याग करने पर प्रलय के देवता शिव अत्यंत क्रोधित हुए। उनके क्रोध से वीरभद्र का आविर्भाव हुआ। वीरभद्र ने भगवान शिव का ध्यान किया और दक्ष की गर्दन मरोड़कर तोड़ डाली। फिर उसके सिर को हवनकुण्ड में भस्म कर दिया। इस तरह से दक्ष का यज्ञ विध्वंस हो गया। विध्वंस इसलिए हुआ क्योंकि ये यज्ञ धर्म की दृष्टी से नहीं था, ये तो शिव जी के अपमान के लिये था। इन्हीं सती का जन्म हिमालय के यहां पार्वती के रुप मे हुआ। इन्होंने भगवान शिव को पति रूप मे पाने के लिए घोर तपस्या की। हजार वर्षों तक कंद मूल खाकर, फिर सैकड़ों वर्षों तक साग पात तथा बाद मे सुखी बिल्व वृक्ष की पत्तियां खाकर उन्होने शिव आराधना की। कई कड़ी परीक्षाओं से गुजरने के बाद अंतत: वे शिव जी को वरण करने मे सफल रहीं।

प्रपन्नाचार्य जी ने अपनी मधुर आवाज़ मे भजनों को गा कर शिव पार्वती विवाह का रोचक वर्णन प्रस्तुत किया। इस अवसर पर शिव बारात भी निकाली गई जिसमें बच्चे भूत-प्रेत के रुप धरे नाचते नजर आए।
