Nirjala Ekadashi 2024: निर्जला एकादशी का व्रत आज, यहां जानिए पूजा विधि और महत्व

On: June 18, 2024 4:31 AM

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Nirjala Ekadashi 2024: पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 17 जून को प्रातः 4:43 बजे से प्रारम्भ होकर 18 जून को प्रातः 6:24 बजे तक रहेगी। 18 जून मंगलवार को निर्जला एकादशी व्रत रखा जाएगा। वहीं द्वादशी तिथि 19 जून को 7 बजकर 29 मिनट तक रहेगी इसलिए 19 जून को एकादशी व्रत का पारण किया जाएगा।
निर्जला व्रत का अर्थ है “बिना पानी के”, इसलिए निर्जला एकादशी का व्रत बिना पानी और किसी भी तरह के भोजन के किया जाता है। इसलिए, इसे सभी एकादशी व्रतों में सबसे कठिन व्रत माना जाता है। यह साल की चौबीस एकादशियों में सबसे महत्वपूर्ण है।
व्रत कथा
निर्जला एकादशी से जुड़ी एक पौराणिक कथा के कारण, निर्जला एकादशी को पांडव एकादशी, भीमसेनी एकादशी या भीम एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पांडवों में दूसरे भाई भीमसेन बहुत ज़्यादा खाते थे, इसलिए वे एकादशी व्रत नहीं रख पाते थे, क्योंकि वे अपनी खाने की इच्छा को नियंत्रित नहीं कर पाते थे। भीम को छोड़कर सभी पांडव भाई और द्रौपदी एकादशी व्रत का पालन करते थे। भीम, अपने शक्तिहीन दृढ़ संकल्प और भगवान विष्णु का अनादर करने से परेशान थे, इसलिए उन्होंने कोई उपाय खोजने के लिए महर्षि व्यास से मुलाकात की।
भीम को व्यास जी ने सलाह दी थी कि वे साल भर में सभी एकादशियों का व्रत न रखने के कारण केवल एक निर्जला एकादशी का व्रत रखें। इस पौराणिक कथा के कारण निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी या पांडव एकादशी भी कहा जाता है।
निर्जला एकादशी व्रत का महत्व
निर्जला एकादशी व्रत के महत्व इसी बात से लगाया जा सकता है कि अपनी रक्षा व भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने के लिए मनुष्य ही नहीं देवता, दानव, नाग, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, नवग्रह आदि भी यह व्रत रखते हैं। इस व्रत के करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और व्यक्ति जन्म मरण के बंधन से मुक्त होकर बैकुंठ धाम को प्राप्त करता है।
निर्जला एकादशी व्रत सबसे कठिन माना जाता है, क्योंकि ज्येष्ठ माह की भीषण गर्मी में रखा जाता है और भोजन ही नहीं जल तक ग्रहण नहीं किया जाता है, मगर भगवान विष्णु की कृपा से भक्त निर्जल रहकर उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थ की प्राप्ति होती है। आध्यत्मिक उन्नति, सुख-शांति, समृद्धि, अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। मां लक्ष्मी की कृपा से जीवन में किसी प्रकार का अभाव नहीं रहता है।
पूजा विधि
इस एकादशी का व्रत रखने से सम्पूर्ण एकादशियों के व्रत्तों के फल की प्राप्ति सहज ही हो जाती है। इस दिन प्रातः काल भगवान विष्णु का षोडशोचार पूजन करना चाहिए। इस दिन ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करना चाहिए। साथ ही विष्णु सहस्रनामस्तोत्र का पाठ करना चाहिए। मिट्टी के कलश मे जल भरकर दक्षिणा सहित दान करना चाहिए। इस एकादशी का व्रत करके अन्न जला, वस्त्र, आसन, जूता छतरी पंखी फूल आदि का दान करना चाहिए।