शुभम जायसवाल
श्री बंशीधर नगर (गढ़वा):– धर्म सिर्फ आस्था की चीज नहीं, बल्कि एक मानक भी है। धर्म की सर्व व्यापकता का समयोचित लाभ सभी प्राप्त करना चाहते हैं। जिस व्यक्ति के जीवन में धैर्य, क्षमा, दम, अस्तेय, शौच, निग्रह, धी, सत्य का भाव एवं क्रोध पर नियंत्रण हो तो वह अपने को धार्मिक समझे। मनुस्मृति में धर्म के दस लक्षण दिए गए हैं। ये लक्षण जिस व्यक्ति में विद्यमान हो उसे अपने को धार्मिक समझना चाहिए।
जिन नियमों पर व्यक्ति से लेकर विश्व की व्यवस्था टिकी हुई है, उनका निस्वार्थ । पालन करना सामान्य धर्म है। सृष्टिकर्ता के प्रति कृतज्ञता, भक्ति अर्पित करना मानव का परम धर्म है। श्री जीयर स्वामी जी ने कहा कि नैमिषारण्य में व्यास गद्दी पर बैठे सूत जी, श्री सुकदेव जी द्वारा राजा परीक्षित को भागवत कथा सुनाकर मुक्त किए जाने की बात कहीं गयी। सूत जी ने मंगलाचरण करते हुए कहा कि जैसे कीमती वस्तु की सुरक्षा हेतु एक गांठ से विश्वास नहीं होता। इसलिए दूसरा गांठ बाँध दिया जाता है। उसी भाव से सूत जी ने दोबारा मंगलाचरण किया। जन्म, पालन, संहार और मोक्ष प्रदान करने वाले सर्व शक्तिमान, जिसके प्रकाश से संसार प्रकाशित है, वैसे सत्य स्वरुप का वंदन किया सत्य स्वरुप की सत्ता से अलग दुनिया के अस्तित्व की कामना संभव नहीं। वैसे भगवान वामन, नृसिंह, राम और श्रीकृष्ण के रुप में जाने जाने वाले परमात्मा का मैं वंदन करता हूँ।
