श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन; अपने इष्ट या गुरु का अपमान होने वाले स्थान पर जाना नहीं चाहिए,चाहे वह स्थान अपने जन्म दाता पिता का ही घर क्यों हो :  वेदांती जी महाराज

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शुभम जायसवाल

श्री बंशीधर नगर(गढ़वा) :– श्रीकृष्ण जन्मोत्सव के अवसर पर श्री बंशीधर मंदिर के खलिहान प्रांगण में श्री बंशीधर सूर्य मंदिर ट्रस्ट की ओर से आयोजित सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन गुरुवार को श्रद्धालुओं को अमृत पान कराते हुए श्रीधाम वृन्दावन से आए आचार्य श्री स्वामी पुण्डरीकाक्षाचार्य वेदांती जी महाराज ने कहा कि किसी भी स्थान जाने से पहले इस बात का ध्यान जरूर रखना चाहिए कि जहां आप जा रहे है, वहां आपका अपने इष्ट या अपने गुरु का अपमान न हो। यदि ऐसा होने की आशंका हो तो उस स्थान पर जाना नहीं चाहिए। चाहे वह स्थान अपने जन्म दाता पिता का ही घर क्यों हो।

सती चरित्र के कथा प्रसंग

कथा के दौरान सती चरित्र के प्रसंग को सुनाते हुए बताया कि माता सती के पिता दक्ष ने एक विशाल यज्ञ किया था और उसमें अपने सभी संबंधियों को बुलाया। लेकिन बेटी सती के पति भगवान शंकर को नहीं बुलाया। जब सती को यह पता चला तो उन्हें बड़ा दुख हुआ और उन्होंने भगवान शिव से उस यज्ञ में जाने की अनुमति मांगी। लेकिन भगवान शिव ने उन्हें यह कहकर मना कर दिया कि बिना बुलाए कहीं जाने से इंसान के सम्मान में कमी आती है। लेकिन माता सती नहीं मानी और राजा दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में पहुंच गई। वहां पहुंचने पर सती ने अपने पिता सहित सभी को बुरा भला कहा और स्वयं को यज्ञ अग्नि में स्वाहा कर दिया। जब भगवान शिव को ये पता चला तो उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोलकर राजा दक्ष की समस्त नगरी तहस-नहस कर दी और सती का शव लेकर घूमते रहे।

भगवन विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े किए। जहां शरीर का टुकड़ा गिरा वहां-वहां शक्तिपीठ बनी। कथा में उत्तानपाद के वंश में ध्रुव चरित्र की कथा को सुनाते हुए समझाया कि ध्रुव की सौतेली मां सुरुचि के द्वारा अपमानित होने पर भी उसकी मां सुनीति ने धैर्य नहीं खोया जिससे एक बहुत बड़ा संकट टल गया। परिवार को बचाए रखने के लिए धैर्य संयम की नितांत आवश्यकता रहती है।

भक्त ध्रुव द्वारा तपस्या कर श्रीहरि को प्रसन्न करने की कथा

भक्त ध्रुव द्वारा तपस्या कर श्रीहरि को प्रसन्न करने की कथा को सुनाते हुए बताया कि भक्ति के लिए कोई उम्र बाधा नहीं है। भक्ति को बचपन में ही करने की प्रेरणा देनी चाहिए क्योंकि बचपन कच्चे मिट्टी की तरह होता है उसे जैसा चाहे वैसा पात्र बनाया जा सकता है। कथा के दौरान उन्होंने बताया कि पाप के बाद कोई व्यक्ति नरकगामी हो, इसके लिए श्रीमद् भागवत में श्रेष्ठ उपाय प्रायश्चित बताया है। इस मौके पर संकीर्तन मंडली की सदस्यों ने प्रभु महिमा का गुणगान कर मनमोहक भजन प्रस्तुत किए। वही कथा में मौजूद श्रद्धालुओं को झूमने को विवश कर दिया। 

कार्यक्रम को सफल बनाने में इनकी रही मौजूदगी

मौके पर बंशीधर सूर्य मंदिर ट्रस्ट के प्रधान ट्रस्टी राजेश प्रताप देव, प्रतिष्ठित व्यवसाई वीरेंद्र प्रसाद कमलापुरी,धीरेंद्र चौबे,राजेश पांडेय,सुजीत लाल अग्रवाल,मनीष जायसवाल,नीलू चौबे, व्यवस्थापक सुरेश विश्वकर्मा,मिक्की जायसवाल,कुणाल कुमार,विनोद गुप्ता सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद थे।

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