रांची :- विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर बिरसा मुंडा स्मृति उद्यान , राँची में जहां एक ओर सांस्कृतिक कार्यक्रम से आदिवासी जीवन दर्शन को समझने का मौक़ा मिल रहा है तो वहीं दूसरी ओर इसी उद्यान में परिचर्चा के माध्यम से देश के कोने कोने से आये ख्यातिप्राप्त विशेषज्ञों से जनजातीय भाषाओं, संस्कृति और परंपराओं सहित जनजातीय साहित्य, इतिहास, जनजातीय दर्शन के महत्व के बारे में जानकारी मिल रही है।कार्यक्रम में आज सेमिनार के पहले दिन ट्राइबल लिट्रेचर सेमिनार में आज सेमिनार के पहले दिन आदिवासी साहित्य में कथा और कथेतर विधाओं का वर्तमान परिदृश्य* के बारे में चर्चा की गई। प्रमुख वक्ता के रूप में वरिष्ठ साहित्यकार एवं सदस्य साहित्य अकादमी,झारखंड श्री महादेव टोप्पो ने साहित्य एवं लोक कथाओं के बारे में विस्तार से जानकारी दी।उन्होंने कहा कि आज की आदिवासी युवा पीढ़ी को आदिवासियों से जुड़े साहित्य एवं कथाओं को पढ़ना चाहिए ताकि वे दिशा हीन ना हों। उन्होंने कहा कि युवा अपनी पुरानी आदिवासी परंपरा से कटकर दिशाहीन हो रहे हैं। उन्हें अपनी पुरानी परंपराओं से जुड़ने की ज़रूरत है। इसके लिए पूर्वजों द्वारा लिखी गये साहित्यों को पढ़ने की ज़रूरत है। उन्होंने पुरखों द्वारा लिखी गई साहित्य एवं कथाओं पर प्रकाश डाला।प्रयागराज से आयी प्रोफेसर श्री जनार्दन गोंड ने आदिवासी के जीवन दर्शन के बारे में विस्तार से बताया।आदिवासी के ज्ञान के बारे में चर्चा की । उनमें प्रकृति को ले कर जागरूकता के बारे में बताया साथ ही प्रकृति से सामंजस्य पर प्रकाश डाला। वहीं मणिपुर विश्वविद्यालय से आयी प्रोफेसर ई विजयलक्ष्मी ने आदिवासी दर्शन में उनके ज्ञान के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहानी एवं उपन्यास के माध्यम से आदिवासियों की जीवनी के बारे में विस्तार से प्रकाश डाला। वहीं त्रिपुरा से आयीं प्रोफेसर मिलन रानी चमातिया ने भी आदिवासी भाषा, जीवन दर्शन के बारे में चर्चा की । उन्होंने भी कहानी एवं उपन्यास के माध्यम से उनके जीवन संघर्ष, शिक्षा के बारे में जानकारी दी। उन्होंने त्रिपुरा के आदिवासी के जीवन संघर्ष,जीवन दर्शन, इतिहास और उनकी संस्कृति के बारे में विस्तार से चर्चा की।उन्होंने कब्रक उपन्यास के माध्यम से त्रिपुरा सहित देश के विभिन्न क्षेत्रों के आदिवासियों के बारे में चर्चा की।सेमिनार के पहले दिन का समापन दिल्ली विश्वविद्यालय से आयी प्रोफेसर स्नेह लता नेगी की चर्चा से हुई। उन्होंने आदिवासी साहित्य की परंपरा एवम् कथा के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने बताया कि झारखंड कथा एवं साहित्य के संदर्भ में बेहतर रहा है यहाँ कई साहित्यकार एवं कथाकार हुए हैं। आदिवासियों के जीवन दर्शन, संस्कृति एवं उनकी परंपरा को जानने एवं समझने के लिए पूर्वजों द्वारा लिखी गई साहित्य को पढ़ने एवं समझने की के साथ साथ उसे अपनी जीवन में आत्मसात् करने की आवश्यकता है।
झारखंड आदिवासी महोत्सव के अवसर पर हुआ सेमिनार का आयोजन, पूरे देश से आए ख्यातिप्राप्त विशेषज्ञों ने लिया हिस्सा,परिचर्चा में रखे अपने विचार
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