रांची: हाल के वर्षों में गॉलब्लैडर (पित्ताशय) और आंत के कैंसर के मामलों में तेजी से वृद्धि देखी गई है। इन बीमारियों में मरीजों को अक्सर दो प्रमुख समस्याओं का सामना करना पड़ता है — आहार मार्ग में रुकावट और पित्त नली में अवरोध। जब तक इन रुकावटों को दूर नहीं किया जाता, तब तक कैंसर का आगे का उपचार जैसे कीमोथेरेपी या रेडियोथेरेपी संभव नहीं हो पाता।
अब पारस एचईसी हॉस्पिटल, रांची में इन रुकावटों का सफल उपचार बिना किसी सर्जरी या चीर-फाड़ के किया जा रहा है। यह उपचार डुओडनल और बाइलरी स्टेंटिंग तकनीक के माध्यम से किया जाता है। पिछले छह महीनों में अस्पताल में चार मरीजों का सफलतापूर्वक डुओडनल स्टेंटिंग किया जा चुका है।
पारस एचईसी हॉस्पिटल के गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी विभाग के ब्रिगेडियर (डॉ.) आलोक चंद्रा ने बताया कि कैंसर मरीजों में रुकावट एक बड़ी चुनौती होती है। जब आहार या पित्त मार्ग अवरुद्ध हो जाता है, तो मरीज भोजन नहीं कर पाते और आगे का इलाज भी रुक जाता है। उन्होंने कहा, “डुओडनल और बाइलरी स्टेंटिंग जैसी आधुनिक तकनीक से अब बिना चीर-फाड़ के इन रुकावटों को दूर किया जा सकता है। इससे मरीजों की जीवन गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार होता है।”
डॉ. चंद्रा ने बताया कि इस प्रक्रिया में प्लास्टिक या मेटल स्टेंट का उपयोग किया जाता है — प्लास्टिक स्टेंट लगभग 3 महीने तक प्रभावी रहता है, जबकि मेटल स्टेंट 1.5 से 2 वर्ष तक कार्य करता है।
पारस हॉस्पिटल के फैसिलिटी निदेशक डॉ. नीतेश कुमार ने कहा कि अस्पताल में आयुष्मान भारत योजना और राज्य सरकार की स्वास्थ्य योजनाओं के तहत कैंसर मरीजों का निःशुल्क या रियायती इलाज किया जा रहा है। उन्होंने कहा, “पारस हॉस्पिटल में एक ही छत के नीचे कैंसर से जुड़ी सभी बीमारियों का इलाज अनुभवी डॉक्टरों की देखरेख में किया जाता है। हमारा उद्देश्य है कि कोई भी मरीज इलाज के अभाव में पीड़ित न रहे।”
पारस एचईसी हॉस्पिटल में बिना चीर-फाड़ के गॉलब्लैडर और आंत के कैंसर का सफल इलाज, डुओडनल व बाइलरी स्टेंटिंग तकनीक से मरीजों को मिली नई उम्मीद













