---Advertisement---

पापी लोगों का संग और अन्न नही खाना चाहिए, ऐसा करने से बुद्धि, मति, पापी के अनुसार हो जाता है : जियर स्वामी

On: August 11, 2023 5:38 PM
---Advertisement---

हमारे द्वारा किए हुए कर्मों का फल सुख और दुख के रूप में प्राप्त होता है : स्वामी

शुभम जायसवाल

श्री बंशीधर नगर (गढ़वा):– पूज्य संत श्री श्री 1008 श्री लक्ष्मी प्रप्पन जियर स्वामी जी महाराज ने कहा कि जिस प्रकार हमारे चाहने के बाद भी दुख हमारा पीछा नहीं छोड़ता है। ठीक उसी प्रकार से हम नहीं भी कामना करेंगे तो हमारा सुख और आनंद हमारे पास रहेगा। जैसे हम दुख के लिए प्रयास नहीं करते हैं। उसी प्रकार सुख के लिए भी हमें प्रयास नहीं करनी चाहिए। हमें कर्तव्य व कर्म को अच्छा करना चाहिए।

स्वामी जी महाराज ने कहा कि लज्जा हमारी राष्ट्र की संस्कृति है। जहां लज्जा नहीं रहती है वहां सब कुछ रहने के बाद भी कुछ रहने का औचित्य ही नहीं बनता है। लज्जा मानव की गरिमा है। अगर इसे संस्कृति से हटा दिया जाए तो पशु और मनुष्य में कोई अंतर हीं नहीं रह रह जाएगा। उन्होंने कहा कि  लोग विवाह से पहले ही पत्नी के साथ फोटो खिंचवा कर दूसरे को, मित्र को भेज देते हैं। मनुष्य को गरिमा और लज्जा ( शर्म ) का ख्याल रखना चाहिए। यहीं कारण है कि हम संस्कृति को भूल जाने के कारण सभी साधन रहने के बाद भी हम निराश हैं।

भक्तिपूर्वक परमात्मा का ध्यान करना ही श्रेष्ठ प्रायश्चित है।

मन द्वारा, वाणी द्वारा, शरीर द्वारा भक्तिपूर्वक परमात्मा का ध्यान करते हुए उनके नाम गुण, लीला, धाम इन चारों का जो उपासना करता है। यह श्रेष्ठ प्रायश्चित है। यह जितना श्रेष्ठ प्रायश्चित है उतना श्रेष्ठ प्रायश्चित यज्ञ, दान, तप भी नही है। यज्ञ, दान, तप करने वाला का हो सकता है उसके पापों का मार्जन न हो। लेकिन जो मन से वाणी से पवित्र होकर नाम गुण, लीला, धाम इन चारों का जो भावना करता है। यहीं सबसे श्रेष्ठ प्रायश्चित है।

श्रीमद्भागवत गीता में अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण से पुछा है कि जो परमात्मा के अधिकारी हैं उनकी क्या भाषा है। उनकी क्या बोल चाल है, क्या लक्षण है। तो भगवान ने बताया कि जो भगवान में सोता है, जगता है, खाता है, उठता है, बैठता है, इतना ही नही जैसे कछुआ अपने शरीर को फैलाकर जल में तैरता है। उसी प्रकार से जो स्थितप्रज्ञ होते हैं, भगवान के भक्त होते हैं। वे दुनिया में अनेक प्रकार के लोगों को संदेश देने के लिए कहीं यज्ञ करते हैं। कहीं मंदिर बनाते है इसके द्वारा जब समाज को संदेश दे देते हैं तो फिर अपने में समेटने लगते हैं। यही निर्वाण पुरूष का लक्षण है।

गलत लोगों के संग में नही रहना चाहिए।

इसलिए अपने आसनो को जीतना चाहिए। आप गलत लोगों के प्रभाव में नही आयें। गलत लोगों के प्रभाव में आकर आप कहीं गलत मार्ग पर न चलें। बल्कि आपके संग में रहकर गलत व्यक्ति सही मार्ग पर चलने लगे। यहीं जीतासन का मतलब है। दुसरा जीत स्वासन है यदि आपको कोई अहित कर दे पर आप उसका अहित की भावना न करीए।

पापी लोगों का अन्न नही खाना चाहिए।

पापी लोगों का न ही संग करना चाहिए तथा न ही अन्न खाना चाहिए। ऐसा करने से बुद्धि, मति, पापी के अनुसार हो जाता है। भीष्म पितामह ने दुर्योधन का संग किया था। तथा उनका अन्न खाया था। इसलिए द्रोपदी को बचा नही पाये। देखते रहे। अनीति अन्याय को भी दुर्योधन के प्रति अपना अधिकार मान लिए थे।

Satyam Jaiswal

सत्यम जायसवाल एक भारतीय पत्रकार हैं, जो झारखंड राज्य के रांची शहर में स्थित "झारखंड वार्ता" नामक मीडिया कंपनी के मालिक हैं। उनके पास प्रबंधन, सार्वजनिक बोलचाल, और कंटेंट क्रिएशन में लगभक एक दशक का अनुभव है। उन्होंने एपीजे इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन से शिक्षा प्राप्त की है और विभिन्न कंपनियों के लिए वीडियो प्रोड्यूसर, एडिटर, और डायरेक्टर के रूप में कार्य किया है। जिसके बाद उन्होंने झारखंड वार्ता की शुरुआत की थी। "झारखंड वार्ता" झारखंड राज्य से संबंधित समाचार और जानकारी प्रदान करती है, जो राज्य के नागरिकों के लिए महत्वपूर्ण है।

Join WhatsApp

Join Now