शुभम जायसवाल
श्री बंशीधर नगर (गढ़वा):– झारखंड और उत्तर प्रदेश की सीमा पर गढ़वा जिले के श्री बंशीधर नगर अनुमंडल मुख्यालय में स्थित श्री बंशीधर मंदिर एक ऐतिहासिक धरोहर है। इस मंदिर में विराजित भगवान कृष्ण की प्रतिमा दुनिया की सबसे कीमती कृष्ण प्रतिमा मानी जाती है।इस मंदिर में 32 मन यानी 1280 किलोग्राम शुद्ध सोने से निर्मित भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा है। 1280 किलो सोने की कीमत आज के समय में लगभग 2500 करोड़ से भी ज्यादा आंकी जाती है। वही मंदिर में मां राधिका की प्रतिमा वाराणसी से अष्टधातु का मंगा कर स्थापित किया गया है।झारखंड, छत्तीसगढ़ व उत्तर प्रदेश के संगम स्थल पर श्री बंशीधर मंदिर बांकी नदी के किनारे अवस्थित यह मंदिर श्रद्धालुओं के आस्था और विश्वास का केंद्र है। सामान्य तौर पर यह 4-5 फीट की प्रतिमा ही नजर आती है। लेकिन, इसका एक बड़ा भाग अभी भी धरती के अंदर ही है।जो की शेषनाग के फन पर निर्मित 24 पंखुड़ियों वाले विशाल कमल पुष्प पर विराजमान है।
नगर उंटारी राजपरिवार के संरक्षण में यह मंदिर देश व विदेश के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। वहीं स्थानीय लोगों के लिए आस्था व विश्वास का केंद्र बना हुआ है। श्री बंशीधर मंदिर में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव वृंदावन की तर्ज पर बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। यहां प्रतिवर्ष फाल्गुन महीने में एक माह तक आकर्षक एवं विशाल मेला लगता है।
यह है इस मंदिर का इतिहास
मंदिर के प्रस्तर लेख और पुजारी स्वर्गीय रिद्धेश्वर तिवारी के द्वारा मंदिर के गुंबद पर लिखित इतिहास के अनुसार संवत 1885 में श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त नगर गढ़ के महाराज स्वर्गीय भवानी सिंह की विधवा रानी शिवमणि देवी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को उपवास रखकर भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन थीं।मध्य रात्रि में भगवान श्रीकृष्ण ने रानी के स्वप्न में आकर दर्शन दिए तथा रानी के आग्रह पर नगर उंटारी लाने की अनुमति दी। रात में देखे स्वप्न के अनुसार रानी अपने लाव लश्कर के साथ करीब 20 किलोमीटर पश्चिम सीमावर्ती उत्तर प्रदेश के दुद्धी थाना क्षेत्र के शिवपहरी नामक पहाड़ी पर पहुंची और स्वयं फावड़ा चलाकर खुदाई कार्य का शुभारंभ किया।
खुदाई में प्राप्त हुई थी भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा
बता दें कि रात्रि में स्वप्न में आए भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा खुदाई में प्राप्त हुई। खुदाई में प्राप्त भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा को हाथी से नगर उंटारी लाया गया। नगर गढ़ के सिंह दरवाजे पर हाथी बैठ गया। लाख प्रयत्न के बावजूद हाथी नहीं उठा। रानी ने राजपुरोहितों से मशविरा कर वहीं पर प्रतिमा रखकर पूजन कार्य प्रारंभ कराया। प्रतिमा सिर्फ भगवान श्रीकृष्ण की थी। इसलिए वाराणसी से श्रीराधा रानी की अष्टधातु की प्रतिमा बनवा कर मंगाया गया और उसे भी मंदिर में श्रीकृष्ण के साथ स्थापित कराया गया।
मराठ शासकों ने बनवाई थी प्रतिमा
इतिहासकार अनुमान लगाते हैं कि यह प्रतिमा मराठा शासकों के द्वारा बनवाई गई होगी। उन्होंने वैष्णव धर्म का काफी प्रचार प्रसार किया था और मूर्तियां भी बनवाई थी। मुगलों के आक्रमण से बचाने के लिए मराठों ने इस प्रतिमा को शिवपहरी नामक पहाड़ी के अंदर छुपा दिया होगा। इस मंदिर में वर्ष 1930 के आसपास चोरी भी हुई थी। इसमें चोर भगवान श्रीकृष्ण की बांसुरी और छतरी चोरी कर ले गए थे। बाद में चोरी करने वाले चोर अंधे हो गए थे। उन्होंने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था। परंतु चोरी की हुई वस्तुएं बरामद नहीं हो पाई। बाद में राज परिवार ने दोबारा स्वर्ण बांसुरी और छतरी बनवा कर मंदिर में लगवाया।