हैदराबाद: हैदराबाद से एक बेहद दर्दनाक और असामान्य मामला सामने आया है, जहां 25 वर्षीय महिला ने अपनी जान दे दी। घटना के पीछे की वजह थी चींटियों का अत्यधिक डर, जिसे मेडिकल टर्म में Myrmecophobia कहा जाता है। इस घटना ने न सिर्फ स्थानीय लोगों को स्तब्ध कर दिया है, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के महत्व पर भी गंभीर बहस छेड़ दी है।
मृतक महिला, मनीषा, अपने पति और तीन वर्षीय बेटी के साथ अमीनपुर में रहती थी। परिवार के अनुसार, मनीषा कई सालों से माइरमेकोफोबिया से जूझ रही थीं। यह डर इतना गंभीर हो गया था कि छोटी से छोटी चींटी को देखकर भी वह पैनिक अटैक का शिकार हो जाती थीं। परिवार ने बताया कि यह डर धीरे-धीरे उनकी रोज़मर्रा की जिंदगी को प्रभावित करने लगा था और वे सामान्य गतिविधियों में भी असहज महसूस करने लगी थीं।
घटना का विवरण
पुलिस के अनुसार, घटना मंगलवार शाम हुई। मनीषा के पति, श्रीकांत, जब घर लौटे तो देखा कि दरवाजा अंदर से बंद है। कई बार आवाज़ देने के बाद भी कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलने पर उन्होंने पड़ोसियों की मदद से दरवाजा खोला। अंदर जाकर उन्होंने देखा कि मनीषा ने अपनी साड़ी से फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी।
मनीषा ने अपने सुसाइड नोट में लिखा कि वह अपने इस डर और मानसिक तनाव के साथ और नहीं जी सकती। उन्होंने अपने पति से अपनी बेटी का ख्याल रखने की अपील की। पुलिस ने बताया कि सुसाइड नोट बेहद भावनात्मक था और इसमें मनीषा की मानसिक पीड़ा और अकेलेपन की झलक साफ दिख रही थी।
Myrmecophobia: एक गंभीर मानसिक स्थिति
विशेषज्ञों के अनुसार, Myrmecophobia एक विशिष्ट फोबिया है जिसमें व्यक्ति को सिर्फ चींटियों को देखकर ही नहीं, बल्कि उनके बारे में सोचने से भी अत्यधिक डर लगता है।
इसके लक्षणों में शामिल हैं:
• घबराहट और भय
• तेज़ दिल की धड़कन
• पसीना आना
• नींद न आना
• अवसाद और लगातार बेचैनी
मनोवैज्ञानिक बताते हैं कि ऐसे फोबिया उपचार योग्य होते हैं, लेकिन इसके लिए समय पर पेशेवर मदद और परिवार का समर्थन बेहद जरूरी होता है।
सामाजिक और पारिवारिक पहलू
मनीषा की आत्महत्या ने परिवार और समाज की भूमिका पर भी सवाल उठाए हैं। पड़ोसियों का कहना है कि मनीषा शांत स्वभाव की थीं और अपनी बीमारी को लेकर शर्मिंदगी महसूस करती थीं। अक्सर वह इसे दूसरों से छिपाने की कोशिश करती थीं। विशेषज्ञों का कहना है कि मानसिक बीमारियों के साथ जुड़े सोशल स्टिग्मा और शर्म कई बार समस्या को और बढ़ा देते हैं।
सबसे दुखद पहलू यह है कि मनीषा की तीन वर्षीय बेटी अब अपनी मां के बिना बड़ी होगी। फिलहाल बच्ची अपने पिता के साथ है, और परिवार के अन्य सदस्य देखभाल में मदद कर रहे हैं।
हैदराबाद की यह घटना केवल एक आत्महत्या का मामला नहीं है, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशीलता और जागरूकता की कमी का दर्दनाक उदाहरण है। मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को नज़रअंदाज करने के बजाय समय पर इलाज, थेरेपी, दवाइयाँ और भावनात्मक सहयोग देना बेहद जरूरी है।
इस घटना ने एक बार फिर याद दिलाया है कि फोबिया, चिंता और अवसाद जैसी मानसिक परेशानियों को गंभीरता से लेना जीवन बचा सकता है।













