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राजेश कुमार साव

बालूमाथ: बालूमाथ के अम्बेडकरनगर और रजवार में अंबेडकर जयंती कार्यक्रम में ज़िप उपाध्यक्ष अनीता देवी शामिल हुईं। उन्होंने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए बताया कि बाबासाहब के नाम से लोकप्रिय डॉक्टर भीमराव अंबेडकर भारतीय बहुज्ञ, विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, लेखक और समाज सुधारक थे।

उन्होंने श्रमिकों, किसानों और महिलाओं के समान अधिकारों का समर्थन किया था। वे स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि एवं न्याय मन्त्री, भारतीय संविधान के जनक एवं भारत गणराज्य के निर्माताओं में से एक थे। उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स दोनों ही विश्वविद्यालयों से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधियाँ प्राप्त कीं तथा विधि, अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में शोध कार्य भी किये थे।

हिंदू धर्म में व्याप्त कुरूतियों और छुआछूत की प्रथा के विरुद्ध उन्होंने संघर्ष किया और लोगों का मार्गदर्शन किया। जाति व्यवस्था के कारण उन्हें सामाजिक प्रतिरोध तथा सामाजिक और आर्थिक रूप से गहरा भेदभाव सहन करना पड़ता था। उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर शिक्षा की शिक्षा ली। डॉ. भीमराव अंबेडकर केवल जाति सुधारक ही नही बल्कि समाज सुधारक भी थे।

उनके शब्दों में हमें अपना रास्ता स्वयं बनाना होगा। राजनीतिक शक्ति शोषितो की समस्याओं का निवारण नहीं हो सकती, उनका उद्धार समाज मे उनका उचित स्थान पाने में निहित है। उनको अपना रहने का बुरा तरीका बदलना होगा… उनको शिक्षित होना चाहिए… एक बड़ी आवश्यकता उनकी हीनता की भावना को झकझोरने और अपने अंदर विश्वास की ज्वाला को जगाने की आवश्यकता है, जो सभी उँचाइयों का स्रोत है।

डॉ. भीमराव आंबेडकर की प्रासंगिकता आज भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। वे न केवल भारतीय संविधान के निर्माता थे, बल्कि सामाजिक न्याय, समानता और मानव अधिकारों के प्रबल पक्षधर भी थे। उन्होंने दलितों और पिछड़े वर्गों के अधिकारों के लिए जीवनभर संघर्ष किया। आज जब समाज में जातीय भेदभाव, सामाजिक असमानता और आर्थिक विषमता जैसी समस्याएं बनी हुई हैं, तब आंबेडकर के विचार और संघर्ष एक मार्गदर्शक के रूप में सामने आते हैं।

आंबेडकर ने शिक्षा को सामाजिक परिवर्तन का सबसे बड़ा साधन माना। उनका यह दृष्टिकोण आज भी उतना ही सटीक है, जब हम समावेशी विकास और समान अवसरों की बात करते हैं। उनका सामाजिक लोकतंत्र का विचार हमें याद दिलाता है कि केवल राजनीतिक स्वतंत्रता पर्याप्त नहीं, बल्कि हर व्यक्ति को गरिमा और समानता का अधिकार मिलना चाहिए।

डॉ. आंबेडकर का विचारधारा आधारित आंदोलन आज के युवाओं के लिए प्रेरणा है, जिससे वे अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठा सकते हैं। इसलिए, डॉ. आंबेडकर की सोच न केवल इतिहास का हिस्सा है, बल्कि वर्तमान और भविष्य के भारत के लिए भी अत्यंत प्रासंगिक है।