बैंक ग्राहकों को जल्द मिल सकती है बड़ी राहत, खत्म होगी मिनिमम बैलेंस की झंझट

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Bank Minimum Balance Rule: देश के कई प्रमुख सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक न्यूनतम बैलेंस की अनिवार्यता को खत्म करने पर विचार कर रहे हैं। गौरतलब है कि कैनरा बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, पंजाब नेशनल बैंक और इंडियन बैंक जैसे दिग्गज सरकारी बैंकों ने हाल ही में न्यूनतम बैलेंस की अनिवार्यता को हटा दिया था। वित्त मंत्रालय और बैंक के शीर्ष अधिकारियों के बीच हुई एक बैठक में भी इस मुद्दे पर चर्चा हुई थी। मंत्रालय ने बैंकों से पूछा कि जब ज्यादातर बैंकिंग सेवाएं ऑनलाइन हो चुकी हैं, तो फिर कस्टमर्स पर न्यूनतम बैलेंस का दबाव क्यों डाला जा रहा है।
RBI की हालिया फाइनेंशियल स्टैबिलिटी रिपोर्ट के अनुसार, बैंकों की जमा प्रोफाइल में बदलाव आया है। अब वे टर्म डिपॉजिट और कमर्शियल पेपर्स जैसे उच्च ब्याज साधनों पर अधिक निर्भर हैं, जबकि बचत और चालू खातों में जमा घट रही है। यह बदलाव भी न्यूनतम बैलेंस नीति को रीव्यू करने की एक वजह बना है।
बैंकों का कहना है कि प्रधानमंत्री जनधन योजना (PMJDY) के तहत खोले गए खातों से एक नई सीख मिली है। शुरुआती दौर में भले ही यह एक्टिव नहीं रहे, लेकिन समय के साथ-साथ इन खातों में राशि जमा होनी शुरू हो गई। इसी के आधार पर अब पॉलिसी में बदलाव को लेकर विचार करने पर मजबूर कर रहा है।
बता दें कि प्राइवेट बैंक के ग्राहकों को अभी भी अपने खाते में मिनिमम बैलेंस रखना होगा, क्योंकि निजी बैंक इस नियम को लेकर अभी भी सख्त नजर आ रहे हैं। हालांकि, जनधन और सैलरी अकाउंट पर वे भी छूट देते हैं। इसके अलावा वे उन ग्राहकों को भी छूट देते हैं, जिनके खाते में निवेश, फिक्स्ड डिपॉजिट आदि के रूप में रिलेशनशिप वैल्यू बनी रहती है।
मिनिमम बैलेंस का मतलब है किसी बैंक अकाउंट में रखे जानी वह रकम, जिसके न होने पर बैंक ग्राहकों पर जुर्माना लगा सकते हैं। इसको भाषा में समझे तो बैंक चाहता है कि आपके अकाउंट हमेशा कुछ न कुछ बैलेंस रहे, ताकि अकाउंट एक्टिव रहे। सरकारी बैंकों के मुकाबले प्राइवेट बैंकों में मिनिमम बैलेंस को लेकर ज्यादा सख्त नियम हैं।