सुप्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय कवियत्री लेखिका अंकित सिन्हा को 25 नवंबर को रांची में मिलेगा स्पेनिश साहित्य गौरव सम्मान 2023

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जमशेदपुर :अंतरराष्ट्रीय कवयित्री और लेखिका अंकिता सिन्हा को रांची में 25 नवंबर को स्पेनिश साहित्य गौरव सम्मान से मिलेगा। इस सम्मान के लिए डॉ माया प्रसाद एवं डॉक्टर अशोक प्रियदर्शी लेखिका अंकिता सिन्हा का चयन किया हैं। विदित हो की अंकिता सिन्हा की तीन पुस्तक आकांक्षा, कोरोनाकाल और मेरी दुनिया मेरी मां प्रकाशित हो चुकी है। अंकिता सिन्हा देश की पहली महिला है कि जब केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाया था तब इस वर्ष गणतंत्र दिवस के पावन अवसर पर श्रीनगर के लाल चौक पर झंडातोलन करने का गौरव हासिल किया था।

इस सामान के लिए साहित्यकार डॉक्टर माया प्रसाद, डॉ अशोक प्रियदर्शी और कुमार संजय ने निर्णय लिया है। डॉ सिद्धनाथ कुमार स्मृति सम्मान और स्पेनिन साहित्य गौरव सम्मान के लिए डॉ माया प्रसाद और डॉ अशोक प्रियदर्शी ने इन प्रबुद्ध लेखकों का चयन किया है, जिसमे डॉ सिद्धनाथ कुमार स्मृति सम्मान

2023 के लिए यह सम्मान श्री मयंक मुरारी को उनके संपूर्ण साहित्य को ध्यान में रखकर देने का निर्णय लिया गया है। डॉ मयंक मुरारी का संपूर्ण लेखन भारतीय अध्यात्म, संस्कृति और ज्ञानात्मक समृद्धि से हमें परिचित कराता है। इनके लेखन को ध्यान में रखें तो चकित होंगे कि भारतीय संस्कृति और आधुनिक साहित्य को किस मनोयोग और गहराई में जाकर इन्होंने अध्ययन किया है और उसका सार हमें उपलब्ध कराया है।

स्पेनिन साहित्य गौरव सम्मान के लिए तीन नामों को चुना गया है

पहला नाम है श्रीमती नंदा पांडेय का। नंदा कविताएं लिखती हैं। कविताओं के बारे में कहा जाता है कि यह जितनी बात अपनी पंक्तियों में कहती है, उससे अधिक पंक्तियों के बीच के रिक्त से कहती है। लाक्षणिकता कविता का विशिष्ट गुण है। इस दृष्टि से नंदा की कविताएं वास्तविक कविताएं हैं। इनका एक ही संकलन अभी आया है, और एक आने को है।

दूसरा नाम है जमशेदपुर की अंकिता सिन्हा का। अंकिता सिन्हा की कविताओं का मिजाज दूसरा है आज की पसंद के क़रीब . इनकी गज़लें बड़ी प्यारी हैं। ये मुक्तक, गजल, कविता और छन्द भी लिखती हैं।

तीसरा नाम है श्री मनोज कुमार कपरदार का। श्री मनोज कुमार कपरदार की सक्रियता चकित करती है। यह झारखंडी माटी की संतान हैं और इस मिट्टी का ऋण चुका रहे हैं। शहरों की चकाचौंध में आदिवासी कला- परंपराएं लुप्त होती जा रहे हैं। श्री कपरदार आदिवासी कला-परंपराओं को रेखांकित कर उन्हें जीवित रखने के उपक्रम में लगे हैं।

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