श्री बंशीधर नगर (गढ़वा):– मानव जीवन पर अन्न और संग का गहरा प्रभाव होता है। हम जैसा अन्न ग्रहण करते हैं वैसा मन बनता है। जैसी संगति करते हैं वैसा आचरण होता है। इसलिए दुष्टों का अन्न और संग दोनों विनाशकारी होता है। श्री जीयर स्वामी जी महाराज ने श्रीमद्भागवत महापुराण कथा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि अधर्म, अनीति और अन्याय के सहारे कुछ समय के लिए समाज में वर्चस्व कायम किया जा सकता है। लेकिन वह स्थाई नहीं हो सकता। नीति, न्याय और सत्य ही स्थायित्व देता है। 58 दिनों से वाण सैया पर लेटे भीष्म पितामह को याद कर कृष्ण की आंखों में आंसू आ गए। युधिष्ठिर ने आंसू का कारण पूछा। विष्णु ने कहा कि कुरु वंश का सूर्य अस्ताचलगामी है। उनका दर्शन किया जाए। द्रोपदी सहित पांचो पांडव वहां पहुंचे। श्री कृष्ण के आग्रह पर भीष्म राज धर्म और राजनीति का उपदेश देने लगे। द्रोपदी मुस्कुरा दी। भीष्म ने मुस्कुराने का राज पूछा। द्रोपदी ने कहा कि आज आप उपदेश दे रहे हैं कि अन्याय नहीं करना चाहिए, अन्याय का साथ नहीं देना चाहिए और अन्याय होते देखना नहीं चाहिए। चीरहरण के वक्त आपकी यह नीति और धर्म कहां थे। भिष्म ने कहा कि उस वक्त अन्न और संग के दोष का मुझ पर प्रभाव था। मनुष्य अर्थ का दास होता है। अर्थ किसी का दास नहीं होता। उन दिनों में दुर्योधन के अर्थ से पल रहा था। गलत लोगों का अन्न संग ग्रहण नहीं करना चाहिए। धीर और वीर पुरुष को भाग्यवादी नहीं कर्मवादी होना चाहिए। गलत तरीके से आई लक्ष्मी उपद्रवकारी होती हैं। इन्हें संभालना मुश्किल होता है। लक्ष्मी का सदैव सदुपयोग होना चाहिए। जिस परिवार और समाज में लक्ष्मी का उपभोग होने लगता है, वहां एक साथ कई विकार उत्पन्न हो जाते हैं। अंततः पतन का कारण बनता है। स्वामी जी ने कहा कि आषाढ़ पूर्णिमा को व्यास जी का अवतरण हुआ था। इसलिए इस तिथि को गुरु पूर्णिमा मनाने की परंपरा है।
्यास जी को नहीं मानने वाले भी गुरु पूर्णिमा मनाते हैं। स्वामी जी ने कहा कि गुरु सिद्ध होना चाहिए, चमत्कारी नहीं। जो परमात्मा की उपासना और भक्ति की सिद्धि किया हो वही गुरु है। गुरु का मन स्थिर होना चाहिए, चंचल नहीं। वाणी संयम भी होनी चाहिए। गुरु समाज का कल्याण करने वाला हो और दिनचर्या में समझौता नहीं करता हो। गुरु भोगी विलासी नहीं हो। गुरु और संत का आचरण आदर्श होना चाहिए। जिनके दर्शन के बाद परमात्मा के प्रति आसक्ति और मन में शांति का एहसास हो वही गुरु और संत की श्रेणी में है। गुरु दंभी और इंद्रियों में भटकाव वाला नहीं होना चाहिए।