शुभम जायसवाल
श्री बंशीधर नगर (गढ़वा):– सुकदेव जी महाराज ने बताया कि मंगलाचरण का मतलब होता है मंगल करना। जैसे की किसी का विवाह हो रहा हो उसकी भूत, भविष्य, वर्तमान की कामना करना ही मंगलाचरण है। इसके लिए पितरों को गीत गाकर, ऋषियों को, भगवान को, देवताओं को गोहराना ही मंगलाचरण होता है। इसी प्रकार श्री शुकदेवजी ने भी बाद में मंगलाचरण किया कि जो मै कह रहा हूं उससे समाज में परिवार में जो सुनने वाला हो उसका मंगल हो। इसीलिए मंगलाचरण किया जाता है। चाहे भजन के रूप में हो स्तुति के रूप में हो।

शुकदेवजी ने परिक्षित को बताया कि जो अच्छे सदाचारी ब्राम्हण हो उसे भगवान का मुख बताया गया है। भगवान के मुख का पूजा करने का मतलब अग्नि का पूजन, रोम का पूजा का मतलब वृक्ष तथा नाड़ी का पूजा से नदियों का, स्वास जो है भगवान का वायु है। भगवान की गति जो है संसार का महायज्ञ का फल मिल गया। भगवान के नेत्र के ध्यान का मतलब अंतरिक्ष का ध्यान कर लिया। उनकी पलकों का ध्यान का मतलब उनकी पलकों का ध्यान करना है। भगवान के पैर के तलवे को ध्यान करते हुए यह मानना चाहिए कि यह पताल लोक है। पैर के अग्र भाग रसातल लोक, दोनो एडी का ध्यान का मतलब महातल का दर्शन, जांघो के ध्यान का मतलब महीतल लोक का दर्शन।
