नई दिल्ली: राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने मदरसों को लेकर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट को बताया कि मदरसों में जिस तरह की शिक्षा की दी जाती है, उसका स्तर व्यापक नहीं है और दीनी तालीम शिक्षा के अधिकार अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन है। मदरसों में जिस तरह की पढ़ाई होती है उसमें इस्लाम को ही सर्वोच्च बताया जाता है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा ‘यूपी बोर्ड आफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004’ को रद्द करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका के सिलसिले में एनसीपीसीआर ने अपनी लिखित दलीलें दी है। सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई है जिसमें उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को असंवैधानिक घोषित कर दिया गया था। कोर्ट ने कहा था कि मदरसा धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत और संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
5 अप्रैल को भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी। आयोग ने अपनी दलील में कहा कि मदरसा उचित शिक्षा प्राप्त करने के लिए अनुपयुक्त जगह है। आयोग ने कहा, “वे न केवल शिक्षा के लिए एक असंतोषजनक और अपर्याप्त मॉडल प्रस्तुत करते हैं, बल्कि उनके काम करने का एक मनमाना तरीका भी है जो पूरी तरह से शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 की धारा 29 के तहत निर्धारित पाठ्यक्रम और मूल्यांकन प्रक्रिया के खिलाफ है।” आयोग ने कहा, “अल्पसंख्यक दर्जे वाले इन संस्थानों द्वारा बच्चों को शिक्षा के अधिकार का विस्तार करने से इनकार करना न केवल बच्चों को शिक्षा के उनके सबसे महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार से वंचित करता है, बल्कि उन्हें कानून के समक्ष समानता के उनके मौलिक अधिकार से भी वंचित करता है।”