जमशेदपुर: झारखंड सरकार ने पेसा रूल- 2022 को अंतिम रूप दे दिया है। पेसा रूल में ग्राम सभाओं को शक्तिशाली और अधिकार संपन्न बनाने का प्रावधान भी किया है। सेंगेल इसका स्वागत करता है मगर पारंपरिक प्रधान करेंगे ग्राम सभा की बैठकों की अध्यक्षता असंवैधानिक प्रतीत होता है क्योंकि पारंपरिक आदिवासी ग्राम प्रधान यथा माझी परगना, मानकी मुंडा, डोकलो सोहोर, पड़हा राजा आदि जनतांत्रिक नहीं राजतांत्रिक व्यवस्था के प्रतीक हैं और खुद संविधान, कानून, मानव अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। निर्दोष कमजोर आदिवासी ग्रामीणों को जुर्माना लगाना, सामाजिक बहिष्कार करना, डायन बनाना, वोट की खरीद – बिक्री आदि इनका धंधा है। उक्त बातें पूर्व सांसद और आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने कही।
उन्होंने झारखंड के मुख्य सचिव सुखदेव सिंह को पत्र लिखते हुए पैसा रुल 2022 में संशोधन का सुझाव देते हुए कहा है कि ज्ञातव्य है कि संविधान की धारा 243 (ख) और 243क में स्पष्ट उल्लेख है कि ग्राम सभा से मतलब पंचायत के क्षेत्र के भीतर समाविष्ट किसी ग्राम से संबंधित निर्वाचन नामावली में रजिस्ट्रीकृत व्यक्तियों से मिलकर बना अभिप्रेत निकाय है और 243क से मतलब ग्राम सभा, ग्राम स्तर पर ऐसी शक्तियों का प्रयोग और ऐसे कृतियों का पालन कर सकेगी, जो किसी राज्य के विधान मंडल द्वारा, विधि द्वारा, अपबंधित किए जाएंगे, है। तब पेसा कानून 1996 भी संविधान की धाराओं के खिलाफ नहीं जा सकता है। अतएव सेंगेल की मांग है पारंपरिक प्रधान की जगह जनतांत्रिक आदिवासी प्रधान इस दायित्व का निर्वहन करें। स्वयंभू पारंपरिक ग्राम प्रधान की जगह यदि गांव के सभी आदिवासी मिल बैठकर अपने आदिवासी ग्राम प्रधान का चयन करेंगे तो यह जनतंत्र, संविधान और जनहित में हितकर होगा। इससे बेहतर आदिवासी स्त्री- पुरुषों को समाज के विकास में योगदान करने का अवसर मिलेगा। अन्यथा परंपरा के नाम से वंशानुगत नियुक्त अधिकांश माझी परगना, मानकी मुंडा आदि जहां अनपढ़, पियक्कड़, संविधान- कानून से अनभिज्ञ व्यक्ति होते हैं। तो वे विकास और न्याय की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में खुद बाधक ही सिद्ध होंगे। प्रथा परंपरा के नाम से जैसे सती प्रथा, तीन तलाक की प्रथा, सबरीमाला में महिलाओं को मंदिर नहीं जाने देने की प्रथा आदि को समाप्त किया जा सका है तो जनतंत्र और जनहित में अब गलत आदिवासी परंपराओं पर भी सुधार अनिवार्य जैसा है।
आदिवासी सेंगेल अभियान की मांग है झारखंड सरकार अभिलंब पारंपरिक ग्राम प्रधान की जगह जनतांत्रिक ग्राम प्रधान की व्यवस्था को पेसा रूल – 2022 में संशोधित करें अन्यथा सेंगेल मान्य झारखंड हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर करने के लिए बाध्य हो सकती है। चूँकि झारखंड के माननीय मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आदिवासियों की बर्बादी पर अपनी वोट बैंक की राजनीति को चमकाने के लिए आए दिन घोषणा कर रहे हैं कि माझी परगना, मानकी मुंडा आदि को बाइक, घर और भत्ता दिया जाएगा। अतः पेसा रुल- 2022 के पीछे आदिवासी समाज की तरक्की का मकसद है या वोट बैंक की राजनीति को चमकाने का कुत्सित प्रयास, स्प्ष्ट हो जाना भी जरूरी है ?