शुभम जायसवाल
श्री बंशीधर नगर (गढ़वा):– पूज्य संत श्री श्री 1008 श्री लक्ष्मी प्रपन्न जियर स्वामी जी महाराज ने श्रीमद् भागवत कथा के दौरान कहा कि मनुष्य के अंदर कामना उत्पन्न होते हीं अपने कर्तव्य से तथा अपने भगवान से विमुख हो जाता है। और नाशवान संसार के समीप चला जाता है। साधक को न तो लौकीक इच्छाओं की पूर्ति की आशा रखनी चाहिए और ना ही परमार्थी की इच्छा की पूर्ति से निराशा ही होनी चाहिए। कामनाओं के त्याग में स्वतंत्र अधिकारी योग्य और समर्थ है परंतु कामनाओं की पूर्ति में कोई भी स्वतंत्र अधिकारी योग्य और समर्थ नहीं है।जैसे-जैसे कामनाएं नष्ट होती जाती है वैसे वैसे साधुता आती है। और जैसे-जैसे कामनाएं बढ़ती जाती है वैसे-वैसे
