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Krishna Janmashtami 2025: देशभर में आज श्रद्धा और उल्लास के साथ श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पावन पर्व मनाया जा रहा है। मान्यता है कि भाद्रपद माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को, मध्य रात्रि में रोहिणी नक्षत्र में भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। इसी उपलक्ष्य में भक्त पूरे हर्षोल्लास से व्रत रखते हैं, पूजा-अर्चना करते हैं और मंदिरों में भव्य आयोजन होते हैं।


मथुरा से गोकुल तक छाई भक्ति

भगवान श्रीकृष्ण का जन्मस्थान मथुरा है और यहीं से जन्माष्टमी उत्सव की रौनक सबसे ज्यादा दिखाई देती है। पूरे ब्रजभूमि में भक्ति का माहौल है। जगह-जगह झांकियां सजाई गई हैं, मंदिरों को फूलों और रोशनी से सजाया गया है। भक्त दिनभर व्रत रखते हैं और रात्रि बारह बजे भगवान के जन्मोत्सव का उल्लास मनाते हैं।

पंचामृत स्नान का महत्व

शास्त्रों के अनुसार जन्माष्टमी की रात भगवान श्रीकृष्ण का बाल स्वरूप “लड्डू गोपाल” का पंचामृत स्नान कराना विशेष फलदायी माना जाता है। पंचामृत में पांच वस्तुएं शामिल होती हैं—

दूध : शुद्धता का प्रतीक

दही : स्थिरता और संयम का प्रतीक

घी : ज्ञान और बुद्धि का प्रतीक

शहद : जीवन में मिठास का प्रतीक

गंगाजल : जीवन और पवित्रता का प्रतीक

(मान्यता है कि इन तत्वों से भगवान का स्नान कराने से भक्तों के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।)

पूजा का शुभ समय और विधि

इस बार जन्माष्टमी पर पूजा का शुभ मुहूर्त 17 अगस्त की रात्रि 12:04 AM से 12:47 AM तक रहेगा। भक्तों को कुल 43 मिनट का समय प्राप्त होगा।

पहले लड्डू गोपाल की हल्के हाथों से मालिश करें।

फिर शुद्ध जल से स्नान कराने के बाद चंदन का लेप लगाएं।

पंचामृत स्नान कराएं— पहले दूध, फिर दही, शहद और चीनी से स्नान। अंत में गंगाजल से अभिषेक करें।

इसके बाद भगवान का श्रृंगार कर उन्हें नए वस्त्र पहनाएं।

श्रृंगार पूर्ण होने पर आरती करें और माखन-मिश्री का भोग लगाएं।

जन्मोत्सव की खुशी में भगवान को झूला झुलाना न भूलें।

पूजा का महत्व

मान्यता है कि जन्माष्टमी की रात भगवान कृष्ण की पूजा करने से भक्तों के जीवन में सुख-समृद्धि, संतति सुख और पापों से मुक्ति मिलती है। साथ ही, घर में सकारात्मक ऊर्जा और खुशहाली का वास होता है। इस प्रकार श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाकर, पंचामृत स्नान और भोग अर्पण करने से भगवान की असीम कृपा प्राप्त होती है।