शुभम जायसवाल
श्री बंशीधर नगर (गढ़वा):– परमात्मा के अनन्त अवतार हैं। जब-जब पृथ्वी पर उनकी आवश्यकता होती है, वे अवतरित होते हैं। महाप्रलय के समय एकमात्र परमात्मा ही विराजमान रहते हैं। वे सारे अवतारों के कर्ता हैं। परमात्मा वस्तुतः अवतार नहीं, अवतारी हैं। समस्त अवतार परमात्मा (नारायण) से ही निःसृत होते हैं। सभी अवतार परमात्मा के रूप हैं। वे परमात्मा से अभिन्न हैं। श्री जीयर स्वामी ने भागवत कथा के सूत-शौनक संवाद की चर्चा करते हुए कहा कि धान का एक बीज बोने से सैकड़ों दाने आ जाते हैं। बीज रूप में बोया गया धान का मूल अलग है और उससे प्राप्त दाना का स्वरूप अलग है। उसी तरह परमात्मा मूल से ही अनेक रूपों में अवतार लेते हैं। परमात्मा के अनेक अवतारों को आश्चर्य नहीं मानना चाहिए।
