भोजन बनाते समय फिल्मी गाना नहीं बल्कि भगवान का गीत गुनगुनाएं : जीयर स्वामी

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शुभम जायसवाल

श्री बंशीधर नगर (गढ़वा):– पूज्य संत श्री श्री 1008 श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने श्रीमद् भागवत कथा सुनाते हुए कहा की भोजन बनाते समय फिल्मी गीत गाना निषेध होता है। गाना ही है तो भगवान का भजन गाएं। श्री राम, भगवान कृष्ण का गीत गुनाइए। जिससे भोजन में स्वाद बढ़ेगा। वह भोजन जो पाएगा वह संस्कारवान होगा। श्रीमद्भागवत महापुराण में लिखा हुआ है कि यशोदा मईया जब भगवान कृष्ण के लिए दही का मंथन करती थी तो भगवान कृष्ण के गुण को गुनगुनाती रहती थी।

आठ नियमों का पालन करने वाला व्यक्ति ही राजयोग अधिकारी होता है।

पहला है यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि, इसी को राजयोग और अष्टांग योग कहा जाता है। इन आठ सिस्टम को जब हम जीवन में उतारते हैं तब सही मायने में हम राजयोग के अधिकारी होते हैं। । यम का मतलब होता है अपने में संयमित होना। जब संयमित होंगे तब बताया गया है कि अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रम्हचर्य, यदि विवाह शादी हुआ हो तो पत्नी के मर्यादा में रहें, यदि विवाह शादी नही हुआ हो पुरे दुनिया की माताओ को माता समझ कर जीवन जीना यह ब्रह्मचर्य है। पांचवा है अपरिग्रह।

परमात्मा को कभी उलाहना मत दीजिए।

परमात्मा को कभी उलाहना मत दीजिए। उन्होंने हमारे लिए क्या किया है। परमात्मा ने जो किया है बहुत किया है। इसी का नाम संतोष है।

चुकामुका बैठ कर पूजा करने से लोग दरिद्र होते हैं।

योग शास्त्र में 84 आसन प्रसिद्ध बताए गए हैं। इसमें दस आसन प्रसिद्ध है। इसमें से तीन आसन प्रसिद्ध है। सिंहासन, पद्मासन, सुखासन। चुकामुका बैठा जाता है उसका नाम है दरिद्राशन। इसको बनाया गया है शौच करने के लिए। यदि इस आसन में बैठकर पूजा करेंगे तो बताया गया है कि इन्द्र के समान भी धनी रहेंगे तो पद, गति और धन जाने में देर नही लगेगी। सबसे अच्छा है सुखासन, पद्मासन।
जिसने आसन को जीत लिया वह कठिन से कठिन काम भी पुरा कर लेता है। जाने अनजाने में अगर कोई पाप होता है तो संत के पास एवं तीर्थ में जाकर उसका मार्जन किया जा सकता है लेकिन तीर्थ और संतो के यहाँ किये गये अपराध का मार्जन संभव नहीं है।

उन्होंने कहा कि भक्ति और भगवान के आश्रय में रहकर सुकर्म करते हुए अपने अपराधों के प्रभाव को कम किया जा सकता है, लेकिन पूरी तरह समाप्त नहीं किया जा सकता है। बारिश में छाता या बरसाती से आँधी में दिये को शीशा से बचाव किया जा सकता है, लेकिन बारिश एवं आँधी को रोका नहीं जा सकता है। भक्ति और सत्कर्म का प्रभाव यही होता है। प्रारब्ध या होनी का समूल नाश नहीं होता। प्रारब्ध का भोग भोगना ही पड़ता है। शास्त्रों में कहा गया है कि प्रारब्ध अवश्यमेव भोक्तव्यम्। ईश्वर की भक्ति अथवा संत-सद्गुरू प्रारब्ध की तीक्ष्णता को कम किया जा सकता है। यदि किसी व्यक्ति के भाग्य में उसके पिछले जन्मों के कुकर्मो के कारण शूली पर चढ़ना लिखा है, तो इस जन्म के ईश्वर-भक्ति या गुरू की कृपा से प्रारब्ध की शूली शूल का रूप ले सकती है। प्रारब्ध को मिटाया नहीं जा सकता, उसके प्रभाव को कम किया जा सकता है।