श्री बंशीधर नगर (गढ़वा):– श्री बंशीधर नगर प्रखंड के पाल्हे – जतपुरा गांव में आयोजित चतुर्थमासीय श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ में भक्तों को बताते हुए श्री श्री 1008 श्री लक्ष्मी प्रपन्न जियर स्वामी जी महाराज ने कहा की भारतीय संस्कृति में सबको मिला है। संत, शास्त्र और सत्पुरुषों द्वारा किसी समस्या का समाधान होने पर समाज एवं राष्ट्र का कल्याण होता है, जबकि अमर्यादित लोगों के दखल व्यवधान पैदा करता है। हम जब किसी कार्य के प्रति संकल्प करते हैं, तो हमारे सद्प्रयास और समर्पण के बाद परमात्मा सत् संकल्प के साथ हमारे अरमान को पूरा कर देते हैं। पाखंडियों के मार्ग पर चलने एवं उनके गलत कायों के प्रति आसक्ति से जीवन में संकट आता है। श्री जीयर स्वामी ने भागवत की महत्ता दर्शाते हुए कहा कि सत्कर्म का मतलब ज्ञान होता है। ज्ञान से मुक्ति होती है।
ज्ञान भागवत कथा को ही बताया गया है। जो कार्य भागवत कथा करेगा, वह वेद नहीं कर सकता। भागवत, भगवान की वाणी है और वेद श्वांस है। वैष्णव धर्म में भागवत पुराण को ‘पंचम वेद’ माना गया है। भागवत पुराण भक्ति–प्रधान ग्रन्थ है। भक्ति के अधीन ही ज्ञान-विज्ञान और सत्कर्म हैं। भक्ति स्वतंत्र है; यह किसी अन्य मार्ग पर निर्भर नहीं करती। तुलसी बाबा कहते हैं ‘भक्ति सुतंत्र सकल सुख खानी’ पुनश्च सो सुतंत्र अवलंब न आना, तेहि अधीन ग्यान-विग्याना।’ उनका निश्चित मत है कि भले ही पानी को मथने से घी उत्पन्न हो जाए, बालू को पेरने से तेल निकल आवे लेकिन परमात्मा के भजन (भक्ति) बिना संसार-सागर को पार करना असंभव है। “बारि मथी घृत होई बरू, सिकता ते बरू तेल । बिनु हरि भजन न भव तरिअ यह सिद्धांत अपेल ।।” स्वामी जी ने कहा कि वेद की बातों को तोड़-मरोड़कर पेश नहीं किया जाना चाहिए। भागवत के अधिकारी सभी हैं, लेकिन वेद के अधिकारी वैदिक तरीका से जीवन यापन करने वाले ही हैं। उन्होंने कहा कि पूस और चैत माह में कामनायुक्त भागवत कथा का श्रवण नहीं करनी चाहिए। कामना रहित भागवत कथा श्रवण में दोष नहीं है। भागवत कथा श्रवण से हरि चित में चिपक जाते हैं। जो बहुत दिनों के योग-तपस्या एवं समाधि से प्राप्त नहीं होता, वह कलियुग में भागवत कथा श्रवण मात्र से होता है।