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शुभम जायसवाल

श्री बंशीधर नगर (गढ़वा):– पूज्य संत श्री श्री 1008 श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि जो दिन आज है, वह कल नहीं रहेगा, चेतना है तो जल्दी चेत जा, देख मौत तेरी घात में घूम रही है। श्रीराम के चरणों की पहचान हुए बिना मनुष्य के मनकी दौड़ नहीं मिटती, लोग केवल भेष बनाकर दर-दर अलख जगाते हैं, परंतु भगवान के चरणों में प्रेम नहीं करते, उनका जन्म वृथा है। जो शान्त, दान्त, उपरत, तितिक्षु और समाहित होता है, वही आत्माको देखता है और वही सबका आत्मरूप होता है। जिन्होंने काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर – इन छः शत्रुओं को जीत लिया है, वे पुरुष ईश्वर की ऐसी भक्ति करते हैं जिसके द्वारा भगवान में परम प्रेम उत्पन्न हो जाता है।

जैसे प्रवाह के वेग में एक स्थान की बालू अलग-अलग – बह जाती है और दूर-दूर से आकर एक जगह एकत्र हो जाती है, ऐसे ही काल के द्वारा सब प्राणियों का कभी वियोग और कभी संयोग होता है। सरलता, कर्तव्यपरायणता, प्रसन्नता और जितेन्द्रियता – तथा वृद्ध पुरुषों की सेवा — इनसे मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। जिससे सब जीव निडर रहते हैं और जो सब प्राणियों से निडर रहता है, वह मोह से छूटा हुआ सदा निर्भय रहता है। जो मनुष्य समस्त भोगों को पा जाता है और जो सब भोगों को त्याग देता है, इनमें सब भोगों को पाने वाले की अपेक्षा सबका त्याग करने वाला श्रेष्ठ है।

जो संग्रह का त्याग कर के अपरिग्रहमें रत है, ऐसे चित्तके मलसे रहित हुए ज्ञानवान् पुरुष ही निर्वाण को प्राप्त होते हैं। जैसे अग्नि के समीप रहने वाले पुरुष का अन्धकार और शीत अग्नि की स्वाभाविक शक्ति से ही दूर हो जाता है, वैसे ही पापी पुण्यात्मा जो कोई भी भगवान को भजता है, वही उनकी महिमा को जानता है और वही शान्ति प्राप्त करता है। जब दृश्य नहीं है, तब दृष्टि भी कुछ नहीं है, दृश्य के बिना देखना कहाँ, दृश्य के कारण ही द्रष्टा और दर्शन हैं। काम, क्रोध, मद, लोभ की खान जब तक मनमें है, तबतक ज्ञानी और मूर्ख में क्या भेद है? दोनों एक समान ही हैं ।