रांची: संथाल समाज की बैठक में कई प्रस्ताव पारित

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रांची: रविवार (9.02.2025) को संथाल समाज की बैठक राजकीय अतिथिशाला रांची में संथाल समाज के धार्मिक, समाजिक एवं जन संगठन के प्रतिनिधि, समाज के बुद्धिजीवियों की एक बैठक राजकीय अतिथिशाला रांची के सभागार में सम्पन्न हुई। जिसमें गिरिडीह, हजारीबाग, संताल परगना, ओडिशा, पश्चिम बंगाल एवं कोल्हान से लोग शामिल हुए।

बैठक में निम्न प्रस्ताव पारित किया गया है:-


मरांग बुरू (पारसनाथ पर्वत) पीरटांड, गिरिडीह संथाल आदिवासियों का देव स्थल है। मरांग बुरू को ईश्वर के रूप में सृष्टिकाल से युगों-युगों से पूजा करतें आ रहें हैं।

प्रत्येक साल वसंत ऋतु फागुन महीना के शुल्क पक्ष तृतीय को दिशोम बाहा महोत्सव मनाया जाता है। पहाड़ के चोटी में अवस्थित युग जाहेर थान में बलि प्रथा का प्रचलन है।

पर्वत के तलहटी में दिशोम मांझी थान अवस्थित है। जहाँ पर मरांग बुरू, जाहेर आयो, मोडेको, गोसाई बाबा एवं माँझी हडाम ग्राम देवता की पूजा-अर्चना बोंगा बुरू होता

प्रत्येक साल वैशाख पूर्णिमा में तीन दिवसीय धार्मिक शिकरा सेन्दरा एवं लॉ-बीर वैसी का आयोजन होता है।

धार्मिक शिकरा सेन्दरा में वन्य प्राणियों की शिकरा करने की पराम्परा रही है। माँझी परगना आपसी वाद विवाद लॉ-बीर बैसी में समाधान करने सर्वोच्च मंच है।

बिहार राज्य जिला गजट एवं 1911 में तैयार सर्वे खतियान भूमि अधिकार अभिलेख में उक्त रीवाज का स्पष्ट उल्लेख है।

बिट्रिश हुकूमत के समय जैन समुदाय के द्वारा दावे संबंधित एक वाद आयुक्त के न्यायालय में दाखिल किया गया था। जैनियों का दावा खारिज कर दिया गया था। उसके बाद जैन समुदाय ने पटना उच्च न्यायालय में वर्ष 1917 में अपील दायर किया, वह भी खारिज हो गया। उसके बाद प्रीवी कॉउन्सील में अपील किये। प्रीवी कॉउन्सील ने न्याय आदेश दिया कि मरांग बुरू (पारसनाथ पर्वत) पर संथाल आदिवासियों का customary right प्रथागत अधिकार है। मरांग बुरू (पारसनाथ पर्वत) में शिकार करना संथालों का पराम्परागत अधिकार है।

संथाल समाज अपना धार्मिक धरोहर विरासत में प्राप्त मरांग बुरू देव स्थल के संरक्षण, सुरक्षा, अपना प्रथागत अधिकार को अक्षुण्य बनाये रखने के लिए कृत सकंल्प है।

पारसनाथ पर्वत का प्राचीन नाम मरांग बुरू है। जैन समुदाय के द्वारा लगातर मरांग बुरू (पारसनाथ पर्वत) पर अतिक्रमण किया जा रहा है।


केन्द्र सरकार, राज्य सरकार एवं न्यायालय को गुमराह किया जा रहा है। गलत आधार एवं तथ्यों को प्रस्तुत कर न्यायालय को गुमराह किया जा रहा है। पारसनाथ पर्वत का प्राचीन नाम मरांग बुरू है। माँस एवं मदिरा का क्रय-विक्रय पर्वत में नहीं है। मात्र संथाल आदिवासियों के प्रथागत अधिकार पूजा पद्धति बलि प्रथा एवं शिकार सेन्दरा से वंचित करने का साजिश किया जा रहा है।

जैन समुदाय के द्वारा झारखण्ड उच्च न्यायालय राँची में जनहित याचिका WP (PIL) 525 Case No 231/2025 17.01.2025 दायर किया गया है।

जिसमें जैन धर्म के आड़ में मरांग बुरू (पारसनाथ पर्वत) में माँस मंदिरा के क्रय-विक्रय पर रोक लगाने का केन्द्र एवं राज्य सरकार का निर्देश का अनुपालन का मांग किया गया है। इसके आड़ में हम संथालों का प्रथागत अधिकार बलि प्रथा को समाप्त करने की‌ साजिश है। हम संथाल समाज इसका निंदा एवं विरोध करतें हैं।

झारखण्ड उच्च न्यायालय राँची में जैन समुदाय के द्वारा जनहित याचिका WP(PIL) Case No – 231/2025 17.01.2025 जो गुजरात के एक संस्था ज्योत के द्वारा दायर किया गया है। जिसमें केन्द्र एवं राज्य सरकार को पक्षकार बनाया गया है।

संथाल समाज इस केश में हस्ताक्षेप याचिका दायर करेगी। इसके लिए मरांग बुरू संस्थान एवं समाज के अन्य धार्मिक, समाजिक एवं रजि० जन संगठन को अधिकृत करती है।

मरांग बुरू (पारसनाथ पर्वत) में जैन समुदाय के द्वारा अतिक्रमण किया गया है। झारखण्ड उच्च न्यायालय राँची 2004 के आदेश के अनुसार मात्र पहाड़ के चोटी में 86 डीसमील भू-भाग में जैन समुदाय को पूजा का छूट दिया है। स्वामित्व नहीं, परन्तु पर्वत के चोटी में वन भूमि पर वन विभाग के मिली भगत से 50 से भी अधिक मठ मंदिर अतिक्रमण कर बनाया गया है। संथाल समाज झारखण्ड सरकार से माँग करती है कि उच्च न्यायालय के सेवानिवृत न्यायधीश के अध्यक्षता में एक जाँच समिति का गठन किया जाए।

भारत सरकार पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधिसूचना संख्या 2795 (3) दिनांक 02 अगस्त 2019 के तहत मरांग बुरू (पारसनाथ पर्वत) को पारिस्थितिकी संवेदी जोन (Eco Sensitive Zone) घोषित किया गया है। अधिसूचना के पारा 3 (V) में आदिवासियों के संवैधानिक अधिकार का रक्षा का उल्लेख है। संविधान के अनुछेच्द 244 का अनुपालन एवं अनुसूचित जनजाति और अन्य पराम्परागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 या जनजातियों की भूमि पर लागू नहीं होगा। परन्तु जैन समुदाय के दबाव में भारत सरकार पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने असंविधानिक ढंग से बिना ग्राम सभा के सहमति से संशोधन मेमोरंडम पत्र F.No 11-584/2014-WL 05 जनवरी 2023 राज्य सरकार को जारी किया है।

जिसके आधार पर जैन समुदाय हम संथाल आदिवासियों के प्रथागत अधिकार customary right पर हमला किया जा रहा है।

संथाल समाज भारत सरकार से माँग करती है कि फाईल न० F.No 11-584/2014-WL 05 जनवरी 2023 को झारखण्ड सरकार का फरमान वापस लिया जाए।

संथाल बुरू (पारसनाथ पर्वत) में संविधान, सुप्रीम कोर्ट का आदेश 180/2011 एवं वन भूमि अधिकार अधिनियम 2006 का अनुपालन सुनिश्चित किया जाए।

झारखण्ड सरकार पर्यटन, कला, संस्कृति विभाग के पत्रांक 22.10.2016 एवं विभागीय पत्रांक 14/2010-1995 21.12.2022 के तहत पारसनाथ पर्वत माँस मदिरा के क्रय-विक्रय एवं उपभोग पर रोक लगाने हेतु उपायुक्त गिरिडीह एवं पुलिस अधीक्षक गिरिडीह को प्रषित किया गया है।

मरांग बुरू (पारसनाथ पर्वत) में माँस मदिरा का क्रय-विक्रय एवं उपभोग नहीं होता है। एक साजिश के तहत जैन समुदाय के दबाव में संथाल आदिवासियों के customary right प्रथागत अधिकार, बलि प्रथा एवं धार्मिक सेन्दरा शिकार से वंचित करने के उद्देश्य से इस तरह का बेतूका फरमान राज्य सरकार ने जारी किया है।

संथाल समाज झारखण्ड सरकार से माँग करती है कि राज्य सरकार के द्वारा जारी एक तरफा बेतूका फरमान को वापस करते हुए निरस्त किया जाए।

मरांग बुरू (पारसनाथ पर्वत) में जैन समुदाय के द्वारा अतिक्रमण के विरोध में संथाल समाज 12 मार्च 2025 को प्रतिरोध मार्च का आयोजन कर विरोध प्रदर्शन करेगी। मधुबन फुटबॉल मैदान से दिशोम माँझी थान तक प्रतिरोध मार्च होगा। जिसमें सभी आदिवासी/मूलवासी अपने भेष-भूषा, पराम्परागत हथियार तीर-धनुष, टमाक, सकवा, सरना झण्डा के साथ शामिल होकर विरोध दर्ज कराएगें।

आदिवासी समाज के सभी समाजिक, धार्मिक एवं जन संगठन अपने झण्डा बैनर के साथ शामिल होगें।

मरांग बुरू (पारसनाथ पर्वत) बचाओ और अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाया जाएगा। सभी स्तर पर अपने प्रथागत अधिकार के लिए संघर्ष तेज करने का निर्णय लिया जाता है। सड़क से सदन तक सरकार एवं न्यायालय में भी पहल की जाएगी। इसके लिए संथाल समाज सभी आदिवासी समाजिक, धार्मिक एवं जन संगठन को मिला कर एक समन्वय समिति का गठन करेगी। जिसका एक मुख्य संयोजक होगा। संस्था एवं संगठन से दो-दो प्रतिनिधि शामिल होगें। इसके अतिरिक्त समाज के बुद्धिजीवि को विशेष आमंत्रित में शामिल किया जा सकता है।

इस में मुख्यरूप से राम लाल मुर्मू,महेश मारंडी,दुर्गा चरण मुर्मू,विष्णु किस्कू,शंकर सोरेन, जसाय मरांडी के साथ लगभग 150 माझी परागण एवं समाजसेवी उपस्थित हुए।

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